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विद्यापतिक चटनी / पूर्णेन्दु चौधरी

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शिक्षित लोकसभ
आदिवासीक सुधंगपनीक
फायदा उठा क’
करैत रहल ओकर शोषण
मुदा, ओ सभ नहि छोड़लक
अपन गीत
अपन संस्कार
अपन भाखा।
मैथिलमे
जेना-जेना होइत गेल
शिक्षाक प्रसार
तेना-तेना लजाए लागल
अपन गीतसँ
अपन सस्कारसँ
अपन भाखासँ
मुँहक स्वाद बदल’ लेल
खा लैत अछि वर्षमे एक बेर
विद्यापतिक चटनी।