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विद्यापति

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विद्यापति की कविताएं

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     (२)

सैसव जौवन दुहु मिल गेल। श्रवनक पथ दुहु लोचन लेल।।

वचनक चातुरि नहु-नहु हास। धरनिये चान कयल परकास।।

मुकुर हाथ लय करय सिंगार। सखि पूछय कइसे सुरत-विहार।।

निरजन उरज हेरत कत बेरि। बिहुँसय अपन पयोधर हेरि।।

पहिले बदरि सम पुन नवरंग। दिन-दिन अनंग अगोरल अंग।।

माधव देखल अपरूब बाला। सैसव जौवन दुहु एक भेला।।

विद्यापति कह तुहु अगेआनि। दुहु एक जोग इह के कह सयानि।।