भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विनयावली / तुलसीदास / पद 71 से 80 तक / पृष्ठ 5

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:23, 16 जून 2012 का अवतरण (पद 71 से 80 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 5 का नाम बदलकर विनयावली / तुलसीदास / पद 71 से 80 तक / पृष्ठ 5 कर दिया गया है)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पद संख्या 79 तथा 80

(79),

देव-
तू दयालु, दीन हौं , तू दानि , हौं भिखारी।
हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप-पुंज-हारी।1।

नाथ तू अनाथको, अनाथ कौन मोसो
मो समान आरत नहिं, आरतिहर तोसो।2।

ब्रह्म तू ,हौं जीव, तू है ठाकुर, हौं चेरो।
तात -मात, गुर -सखा, तू सब बिधि हितू मेरो।3।

तोहिं मोहिं नाते अनेक, मानियै जो भावै।
 ज्यों त्यों तुलसी कृपालु! चरन-सरन पावै।4।

(80),

देव-
और काहि माँगिये, को माँगिबो निबारै।
अभिमतदातार कौन, दुख-दरिद्र दारै।1।

धरमधाम राम काम- कोटि- रूप से रूरो।
साहब सब बिधि सुजान, दान -खडग -सूरो।2।

 सुसमय दिन द्वै निसान सबके द्वार बाजै।
 कुसमय दसरथ के! दानि तैं गरीब निवाजै।3।

सेवा बिनु गुनबिहीन दीनता सुनाये।
जे जे तैं निहाल किये फूले फिरत पाये।4।

तुलसिदास जाचक-रूचि जानि दान दीजै।
रामचंद्र चंद्र तू , चकोर मोहिं कीजै।5।