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विन्ध्य शृंखला / जतरा चारू धाम / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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मध्य विन्ध्य दक्षिण पूर्वापर पुरी - कच्छ विस्तार
कत नद-नदी खात - परिखा जल रेखा लेखा - पार।।46।।

जत जे गिरि-प्रस्रवण नीर गिरिनार नहरि जलखात
मज्जन-भार्जन, स्नान-आचमन तर्पण अर्पण तात।।47।।

चर्मण्वती तापती वैतणीहुक तरणी युक्त
दूर कर्मनासाहु प्रवाहित कय कलि-कलुषहु मुक्त।।48।।

महानदी वा क्षुद्रहु क्षिप्रा रेवा रेखा धार
जलमय रसमय स्वादु-शीतला उपाहार उपहार।।49।।

झील नीलजल कूप नहरि बल स्नातक नित्य अखेद
राजस्थानक सैकत पथहु पटायब श्रम-शुचि स्वेद।।50।।