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विपर्यास / अज्ञेय

 तेरी आँखों में पर्वत की झीलों का नि:सीम प्रसार
मेरी आँखों बसा नगर की गली-गली का हाहाकार,
तेरे उर में वन्य अनिल-सी स्नेह-अलस भोली बातें
मेरे उर में जनाकीर्ण मग की सूनी-सूनी रातें!

लाहौर, 19 सितम्बर, 1935