http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A4_/_%E0%A4%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2_%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%B7%E0%A4%A3&feed=atom&action=historyविरासत / उर्मिल सत्यभूषण - अवतरण इतिहास2024-03-28T19:57:42Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%A4_/_%E0%A4%89%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2_%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AD%E0%A5%82%E0%A4%B7%E0%A4%A3&diff=268934&oldid=prevसशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया2019-10-19T18:25:05Z<p>'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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{{KKRachna<br />
|रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=अंधेरों के खिलाफ / उर्मिल सत्यभूषण<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
ओ माँ<br />
तुमने जन्म से आज तक<br />
अपनी आत्मा के प्रकाश में<br />
नहला-नहला कर जो आलोक<br />
हममें भर दिया है<br />
उसे झुठलाना मत<br />
हमारी भौतिक असफलताओं से<br />
घबरा कर, भूल कर भी<br />
दोहरे मापदंडों की दोषी<br />
मत बनना<br />
बीसवी शताब्दी में अठारहवीं<br />
शताब्दी के आदर्श<br />
घुट्टी में पिलाकर<br />
भूल है तुम्हारी<br />
यह अपेक्षा करना<br />
कि इस कम्प्यूटर युग की<br />
निरंतर कठिन होती जाती<br />
प्रतियोगिताओं की भीड़ को<br />
चीर कर पहुंचेंगे<br />
तुम्हारे लाड़ले<br />
उन्नति के चरम शिखरों पर।<br />
अब विसंगतियों के<br />
चक्रव्यूहों में फंसकर<br />
जूझना और क्रूर स्थितियों<br />
के सलीबों पर टंग जाना<br />
ही हमारी नियति<br />
बन गया है।<br />
तुम, उससे घबराओं मत<br />
अपनी ही अनुगूंज सुनकर<br />
छटपटाओ मत<br />
सत्य के अन्वेषी तो<br />
मसीहा कहलाते है<br />
और आदर्शों की सूली पर<br />
टंग जाते हैं<br />
अब, लौटाने को मत कहो<br />
सत्य, ईमानदारी और<br />
मानवीय संवेदन की<br />
फूल-सी सुकुमार अपनी<br />
विरासत को<br />
ओ हमारी करुणामयी<br />
प्रभामयी माँ!<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५