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'''शरद बिल्लौरे आठवें दशक बिलौरे:जन्म १९ अक्तूबर १९५५ रहटगाँव, ज़िला होशंगाबाद में। वहीं सरकारी स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा। भोपाल के उत्तरार्ध का सबसे अधिक संभावनाओं क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालय से भरा कवि था। हर जगह उसमें लोगों स्नातक। १९७५-७६ में भोपाल विश्वविद्यालय से अपनापा बना लेने का विलक्षण गुण था। उसकी कविता की आत्मीयता वस्तुतः उसके व्यक्तित्व का ही कविता हिन्दी साहित्य में रूपान्तरण है। गाँव एम०ए०। तपेदिक के अपने कारण कुछ समय भोपाल के टी०बी० अस्पताल में भरती रहे। कई निजी अनुभवों को कविता और स्वायत्तशासी संस्थाओं में रूपान्तरित करते हुए १९७४-७५ अध्यापक और क्लर्क के आसपास उसने कविता लिखना शुरू किया था। उसकी प्रारम्भिक कविताओं रूप में भी एक सहज और स्वयंस्फूर्त वर्ग-चेतना थी, जिसका विकास आगे चलकर एक प्रतिबद्ध कविता कार्य किया। १९७९ में अध्यापक के पद पर अरूणांचल प्रदेश में नियुक्ति। गाँव लौटते हुए 'लू'लगने के कारण ३ मई १९८० को कटनी अस्पताल में हुआ।मृत्यु।
शरद बिल्लौरे आठवें दशक के उत्तरार्ध का सबसे अधिक संभावनाओं से भरा कवि था। हर जगह उसमें लोगों से अपनापा बना लेने का विलक्षण गुण था। उसकी कविता गहरे और सघन लयात्मक संवेदन की आत्मीयता वस्तुतः उसके व्यक्तित्व का ही कविता में रूपान्तरण है। जीवन की भटकन और कठिन संघर्षों गाँव के अपने निजी अनुभवों को रचनात्मक कौशल और व्यस्क होती स्पष्ट वैचारिक दृष्टि कविता में रूपान्तरित करते हुए १९७४-७५ के साथ आसपास उसने कविता और कविता की विविधता लिखना शुरू किया था। उसकी प्रारम्भिक कविताओं में बदलती कविता। लोक-विश्वासों भी एक सहज और लोकस्वयंस्फूर्त वर्ग-मुहावरों को नए सन्दर्भ चेतना थी, जिसका विकास आगे चलकर एक प्रतिबद्ध कविता में व्याख्यायित करती। तीव्र आवेग और खिलंदड़ेपन के साथ ही गहरी आत्मीयता और सामाजिक विसंगतियों से उपजे विक्षोभ और करुणा की कविता।हुआ।
उसकी कविता अभी प्रक्रिया में थी, अपनी पहचान गहरे और अपने मुहावरे सघन लयात्मक संवेदन की कविता है। जीवन की भटकन और कठिन संघर्षों को अर्जित करने रचनात्मक कौशल और व्यस्क होती स्पष्ट वैचारिक दृष्टि के साथ कविता और कविता की प्रक्रिया विविधता में, लेकिन एक महत्त्वपूर्ण कविता बदलती कविता। लोक-विश्वासों और लोक-मुहावरों को नए सन्दर्भ में व्याख्यायित करती। तीव्र आवेग और खिलंदड़ेपन के साथ ही गहरी आत्मीयता और सामाजिक विसंगतियों से उपजे विक्षोभ और करुणा की पूरी सम्भावनाएँ उसमें मौज़ूद थीं।कविता।
उसकी कविता अभी प्रक्रिया में थी, अपनी पहचान और अपने मुहावरे को अर्जित करने की प्रक्रिया में, लेकिन एक महत्त्वपूर्ण कविता की पूरी सम्भावनाएँ उसमें मौज़ूद थीं। उसकी सौ से अधिक कविताओं में से चुनी हुई चवालिस कविताएँ इस संग्रह में ली गई हैं। इसके अतिरिक्त एक नाटक "अमरू का कुर्ता" भी उसने लिखा था जिसे अन्तिम स्वरूप देने का अवसर उसे नहीं मिला।::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::'''--राजेश जोशी
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