http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B7:%E0%A4%A8%E0%A4%8F_%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0&feed=atom&hidebots=1&hideredirs=1&limit=50&offset=&namespace=0&username=&tagfilter=Kavita Kosh - नए पृष्ठ [hi]2024-03-29T01:24:28ZKavita Kosh सेMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B6%E0%A5%80%E0%A4%A4_%E0%A4%8B%E0%A4%A4%E0%A5%81_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%80शीत ऋतु / अर्चना कोहली2024-03-27T18:48:17Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कोहली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<poem><br />
चहुँदिश अलाव सब जलें, बैठे सब हैं मीत।<br />
हुई विदाई ग्रीष्म की, आई ऋतु अब शीत॥<br />
आँखमिचौनी धूप की, ठिठुरे सारे आज।<br />
घना कोहरा छा रहा, फैला हिम का राज॥<br />
<br />
बजते किट-किट दाँत हैं, मुख होता है लाल।<br />
शिथिल सभी अब अंग हैं, रूखी होती खाल॥<br />
सहम गया अब सूर्य है, ताप हुआ अब मंद।<br />
निकले ऊनी वस्त्र हैं, किवाड़ सबके बंद॥<br />
<br />
मोहक अब कुदरत लगे, शबनम झरती पात।<br />
खिलते सुंदर फूल हैं, शीतल होती वात॥<br />
प्यारी लगती अब धरा, सजते सब हैं बाग।<br />
आया मौसम साग का, चुप होते हैं काग॥<br />
<br />
हरा दुशाला अवनि का, मुदित सभी हैं लोग।<br />
गाजर आती ख़ूब है, लगता हलवा भोग॥<br />
रुचिकर लगती चाय है, होती वह है साथ।<br />
कैसा होता सर्द है , मलते सब हैं हाथ॥<br />
<br />
पर मुश्किल में दीन हैं, फटे सभी के चीर।<br />
जीवन है फुटपाथ पर,बहते उनके नीर॥<br />
थर थर वह है काँपता, लगा दिसम्बर माह।<br />
गिरती जब भी बर्फ़ है, निकले मन से आह॥<br />
<br />
रूप प्रकृति के भिन्न हैं, पर सुंदर अंदाज़।<br />
आते-जाते वे सदा, अद्भुत यह है राज़॥<br />
सुख-दुख की ये सीख दें, कितने इनके रंग।<br />
ख़ुशियाँ दें अनमोल हैं, रहते हम सब संग॥<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%B9%E0%A5%8B_%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%80पवित्र हो व्यवहार / अर्चना कोहली2024-03-27T18:47:54Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कोहली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<poem><br />
घूमते विषधर देश में, फैले घर भी नाग।<br />
नहीं सुरक्षित नार है, इज़्ज़त पर अब दाग॥<br />
छिड़ा महाभारत सदा, घर-घर में है युद्ध।<br />
भाई-भाई सब लड़ें, अपनों पर हैं क्रुद्ध॥<br />
<br />
कलुषित सबके मन हुए, करें गरल का पान।<br />
जायदाद पर दृष्टि है, संकट में अब जान॥<br />
वृद्धाश्रम सब हैं भरें, करते हम अपमान।<br />
उठता उनपर हाथ है, टूटे उनका मान॥<br />
<br />
भरना मन संस्कार जब, उत्तम तब आचार।<br />
मर्यादित जब लोग हों, पवित्र हो व्यवहार॥<br />
सब ईर्ष्या का अंत हो, खिलते हृदयाकाश।<br />
रामराज्य होगा तभी, खिलते चित्त पलाश॥<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AF%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%80यशोधरा / अर्चना कोहली2024-03-27T18:47:29Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कोहली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<poem><br />
गहन ज्ञान की खोज में, चले गए चुपचाप।<br />
अर्ध रात्रि में छोड़कर, दिया विरह का ताप॥<br />
सात जन्म का साथ यह, छूटा क्यों था हाथ।<br />
सबके दुख का ध्यान था, पर मेरा क्या नाथ॥<br />
<br />
परिणीता थी आपकी, माना बस पथ शूल।<br />
पुत्र राहुल का दोष क्या, क्या है उसकी भूल॥<br />
पाना ममत्व था उसे, सोची क्या यह बात।<br />
पूछे मुझसे प्रश्न है, कब आयेंगे तात॥<br />
<br />
समिधा-सी जलती रहूँ, नैया है मँझधार।<br />
प्रियवर ऐसा क्यों किया, करना ज़रा विचार॥<br />
भले बुद्धत्व प्राप्त हो, जग पाए उपहार।<br />
पर हमको छोड़ा सदा, जीवन लगता भार॥<br />
<br />
क्यों विस्मृत करके हमें, चले अनजान राह।<br />
समझ नहीं पाए मुझे, निकले मुख से आह॥<br />
कंटक पथ की जान तुम, दिया तीक्ष्ण आघात।<br />
पीड़ा कैसी यह मिली, कटे नहीं दिन-रात॥<br />
<br />
रंगहीन जीवन हुआ, कह तो जाते आप।<br />
राहुल का तो सोचते, करता सदा विलाप॥<br />
मात पिता का ध्यान क्या! मन भरा है विषाद।<br />
कैसे पितृ का ऋण चुके, आता क्या है याद॥<br />
<br />
हृदय छिपाया भेद था, सोच खिन्न हूँ आज।<br />
नहीं भरोसा प्रिय किया, गूँजे यह आवाज़॥<br />
नज़रों से सबकी छिपूँ, किससे हो संवाद।<br />
सुत अब हुआ अनाथ है, खोजे है प्रासाद॥<br />
<br />
सोचा पा लोगे भले, खोया क्या है ज्ञान।<br />
सहती जो मैं वेदना, कैसे होगा भान॥<br />
कमी प्यार में ही रही, आते रहें विचार।<br />
ममता ने बाँधा नहीं, पाई सबने हार॥<br />
<br />
एकाकी मैं रह गई, कैसा यह व्रजपात।<br />
मन मेरा अब रिक्त है, मन में झंझावात॥<br />
लेगी सहन यशोधरा, समझा क्या आसान।<br />
सहज नहीं यह कर्म है, कठिन यह इम्तिहान॥<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%83%E0%A4%A4%E0%A4%BF_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%9A%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%80प्रकृति में चेतना / अर्चना कोहली2024-03-27T18:47:03Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कोहली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<poem><br />
सृष्टि के प्रत्येक अवयव में अव्यक्त-सी ख़ुशी और वेदना है<br />
अप्रतिम रूप-रंग-सुर की प्यारी-सी ही एक संरचना है।<br />
देखकर उन्हें कभी आनंद तो कभी विषाद की तरंग उठे<br />
धरा से ले अंबर तक निरुदेश्य नहीं ईश की कोई संकल्पना है॥<br />
<br />
विस्तृत व्योम पर मेघ की विभिन्न आकृतियाँ नज़र आती<br />
सूरज की सुनहरी किरणों से लाल-सतरंगी वह बन जाती।<br />
मानो एक अद्भुत चितेरे ने विस्तृत नीले कैनवास को फैलाया<br />
नटखट किशोरी जैसे शरारत से लाल-पीला रंग उसपर गिराती॥<br />
<br />
अंबर से जलधि से भरे नीर-कोश से धरा पर जल राशि गिरती<br />
मानो सद्य स्नाता के केशों से जल-बूँदें धीरे-धीरे हैं टपकती।<br />
तभी तो हरे-भरे गलीचे से सुंदर हमारी वसुधा हो गई सुसज्जित<br />
जैसे एक नवयौवना ओढ़कर हरित साड़ी प्रिय मन में मिलती॥<br />
<br />
कल-कल की मधुर ध्वनि से मानो नदिया प्यारी कुछ कहती<br />
जल-धारा से भरकर कानों में कुछ रस-सा वह घोल देती।<br />
झींगुर-पपीहे-दादुर सभी ही नतमस्तक होते उनके आगे<br />
तभी तो प्रीत की अलग-सी बात उनकी जुबां बयाँ करती॥<br />
<br />
सौंधी-सौंधी-सी मिट्टी की महक हमारे नथुनों में भर जाती<br />
जैसे प्रकृति के सौंदर्य की अनकही वार्ता सभी को समझाती।<br />
शांत पहाड़ियाँ हों या फलों से लदे तरु या गगनस्पर्शी श्रृंग।<br />
चहुँदिश में ही इसकी नैसर्गिक-सुंदरता की कथा कही जाती॥<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9A_%E0%A4%A8_%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87_%E0%A4%86%E0%A4%81%E0%A4%97%E0%A4%A8_%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A4%BE_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%80नाच न जाने आँगन टेढ़ा / अर्चना कोहली2024-03-27T18:46:14Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कोहली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<poem><br />
आता-जाता ख़ुद नहीं, करते रहते शोर।<br />
तैयारी पूरी नहीं, कैसे मिलता छोर॥<br />
<br />
मन उनका चंचल सदा, कैसे हो उत्थान।<br />
दोषारोपण ही करें, करते वे अभिमान॥<br />
<br />
आँगन टेढ़ा वे कहें, कहाँ पता है नाच।<br />
वाद्य-यंत्र जाना नहीं, बजता कैसे साज॥<br />
<br />
मिलते नंबर कम जिसे, मानें शिक्षक भूल।<br />
खुद पढ़ते वे हैं नहीं, कहते गुरु हैं मूल॥<br />
<br />
बढ़ चढ़कर ही बोलते, निज का ही गुणगान।<br />
ज्ञान-शून्य होते भले, कहते हैं विद्वान॥<br />
<br />
मियाँ मिट्ठू वे बन रहें, ख़ुद ही पीटे ढोल।<br />
खुलती जब भी पोल है, हो जाते वे गोल॥<br />
<br />
लिखना आता है नहीं, करते कॉपी आज।<br />
कविता चोरी वे करें, निंदनीय यह काज॥<br />
<br />
खाली ही दिमाग़ है, कैसे ग़लती दाल।<br />
दुश्मन हैं वे अक्ल के, बजते हैं बस गाल॥<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8_%E0%A4%AA%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82_%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%AA%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%AA_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%80नारी के अपमान पर क्यों हैं चुपचाप / अर्चना कोहली2024-03-27T18:45:26Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कोहली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<poem><br />
नारी के अपमान पर, क्यों रहते चुपचाप।<br />
मर्यादा अब भंग है, करना विरोध आप॥<br />
<br />
छोटी-छोटी बात पर, करते कितना शोर।<br />
आसमान सिर पर सदा, मनमानी है घोर॥<br />
<br />
घर में होते शेर हैं, तीखे उनके बोल।<br />
बाहर रहते शांत हैं, छिपते अपने खोल॥<br />
<br />
मसले जो भी फूल हैं, होगा अब संहार।<br />
तोड़ो अपना मौन अब, करना उनपर वार॥<br />
<br />
बनना रक्षक आज है, रखना उसका मान।<br />
गीदड़ बनकर जो छिपा, उसको ले पहचान॥<br />
<br />
बेटी है जो देश की, होती क्यों लाचार।<br />
करना मिलकर न्याय है, सुननी है चीत्कार॥<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%9C%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A5%80_%E0%A4%AD%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A5%80_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%80जैसी करनी वैसी भरनी / अर्चना कोहली2024-03-27T18:45:03Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कोहली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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}}<br />
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<poem><br />
जैसी करनी वैसी भरनी, गीता का है ज्ञान।<br />
फल मिलता हमको कर्मों का, करना इसका ध्यान॥<br />
<br />
बोया कीकर का तरु जब है, कैसे पाएँ आम।<br />
जीवन में जो सुख दुख आते, कर्मों का परिणाम॥<br />
<br />
जैसे संस्कारों को पाया, वैसा करते काज।<br />
विषधर बन जो फ़न फैलाए, गिरती उनपर गाज।<br />
<br />
खाई में वे ही गिरते हैं, जो खोदे हैं कूप।<br />
करना ऐसे कर्मों को सब, जग में बनते भूप।<br />
<br />
समझे पीड़ा सबकी जो हैं, पाते सबका प्यार।<br />
अच्छाई जो करते रहते, सपने हैं साकार॥<br />
<br />
पढ़ते पुस्तक में उदाहरण, दुर्जन का हो नाश। <br />
क्यों करते निंदित कामों को, सुधरे मानव काश। ।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AE%E0%A4%A4_%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%B8%E0%A5%87_%E0%A4%96%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%80मत करें स्वास्थ्य से खिलवाड़ / अर्चना कोहली2024-03-27T18:42:32Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कोहली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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}}<br />
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<poem><br />
धुएँ के लच्छे बहुत शान से कुछ लोग उड़ाते हैं<br />
कश पर कश सिगरेट-बीड़ी के खींच रिझाते हैं।<br />
थोड़ी-सी ख़ुशी के लिए कर देते ख़ुद का नाश<br />
स्वास्थ्य के खिलवाड़ से बन जाते ज़िंदा लाश॥<br />
<br />
सेवन से इनके शरीर होता रहता है खोखला<br />
घातक बीमारियों का होता है तन पर हमला।<br />
धीमे विष समान यह ले जाता है मृत्यु के पास<br />
अत्यधिक धूम्रपान से ही टूटती जाती साँस॥<br />
<br />
सिगरेट-बीड़ी-सिगार-तंबाकू सब हानिकारक<br />
हृदय-रोग-फेफड़ों के कैंसर दमा के हैं द्योतक।<br />
जानते-बूझते भी जाल में इसके फँसते इंसान<br />
आसपास रहनेवाले भी सर्वदा रहते परेशान॥<br />
<br />
अजन्मे शिशुओं पर भी पड़ता इसका प्रभाव<br />
जीवन संगिनी से भी इस कारण रहे टकराव।<br />
धूम्रपान भी होता है प्रदूषण का प्रमुख कारण<br />
ख़ुशहाल जीवन हेतु निषेध को करना धारण॥<br />
<br />
छोड़ इसे असमय नहीं मिलेगा यमराज-पाश<br />
उत्तम स्वास्थ्य का मिलेगा सबको ही पलाश।<br />
सरकारी आदेश से नहीं अंतर्मन से अपनाओ<br />
रोगों से दूर रहकर अनमोल जीवन महकाओ॥<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%95-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%80स्वाभिमान का प्रतीक-नारी / अर्चना कोहली2024-03-27T18:42:04Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कोहली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<poem><br />
तोड़ने नारी का सम्मान घूम रहे हैं विषधर<br />
चहुँदिश में ही फैले हुए उनके नुकीले कर।<br />
दंश से उनके बेड़ियों में जकड़ी हैं नारियाँ<br />
आक्रांत होकर घर में सिमट गई कुमारियाँ॥<br />
<br />
मर्दन करने उनका घर में भी छिपे हैं भुजंग<br />
कुदृष्टि से निरीक्षण करें उनका अंग-प्रत्यंग।<br />
भय से उनके ऊँची उड़ान पर लगी है रोक<br />
अमर्यादित आचरण से उनके निंदित लोक॥<br />
<br />
धन-पहुँच बल पर उनको नहीं पाते पकड<br />
तभी जाल में पाता नहीं कोई उसे जकड़।<br />
सुरक्षा की कोताही से बढ़ रहा अत्याचार<br />
दिनोदिन इनके कारण हो रहा हाहाकार॥<br />
<br />
एकता-दृढ़ विश्वास से कुचलना होगा फन<br />
छिपे भुजंगों को खोज करना होगा दमन।<br />
इनके कारण ही उन्नत शीश हमारा झुका<br />
लक्ष्य-प्राप्ति के लिए बढ़ा क़दम है रुका॥<br />
<br />
तीक्ष्ण डंक को निकालना सीख गई नारी<br />
शक्तिपुंज बनी नारी अब नहीं है बिचारी।<br />
स्वाभिमान के लिए कर सकती है प्रहार<br />
काली-दुर्गा का ले सकती है वह अवतार॥<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7_%E0%A4%B8%E0%A5%87_%E0%A4%9D%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%95_%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B8_/_%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B2%E0%A5%80गवाक्ष से झाँक रहा मधुमास / अर्चना कोहली2024-03-27T18:41:35Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना कोहली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=अर्चना कोहली<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
देखो रे अलि! गवाक्ष से झाँक रहा मधुमास<br />
रंग-बिरंगे प्रसूनों से छाया विचित्र-सा उजास।<br />
सरसों के चटकने से खेत हुए आज स्वर्णिम<br />
समस्त दरख़्त हरे-हरे पल्लवों से हैं अप्रतिम॥<br />
<br />
रमणीयता देख प्रकृति की मयूर भी प्रफुल्लित<br />
नृत्य देखकर उसका सभी हो गए आहृलादित।<br />
चटक गई इस सुहानी ऋतु में आम्र की मंजरी<br />
पुलकित लग रही कुंज की हरेक ही वल्लरी॥<br />
<br />
कानन में अब खिलने लगे हैं लाल से पलाश<br />
मिलने को धरा को लालायित हुआ आकाश।<br />
मलयज समीर से लुभावनी-सी लगती बयार<br />
पीत रंग ओढ़ कुदरत ने दिया प्यारा उपहार॥<br />
<br />
कोयलिया भी झाड़ियों में छिप सुनाती राग<br />
कोलाहल से बच्चों के सुशोभित सब बाग।<br />
सुरभि से पुहुप की चहुँ दिशायें रही हैं महक<br />
गेहूँ और जौ की बालियाँ अब रही हैं चटक॥<br />
<br />
देख यह दृश्य बदला तितलियों का मिजाज़<br />
अद्भुत-से प्रेम के इस पर्व का प्यारा अंदाज़।<br />
वीणापाणि के स्वागत में हुई है ये सजावट<br />
कुसुमाकर ने तभी की है अद्वितीय बनावट॥<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%B6_%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0_/_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%88%E0%A4%9F%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97_/_%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%B8_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9प्रवेश द्वार / साईटर सीटोमौरांग / श्रीविलास सिंह2024-03-26T10:30:57Z<p>अनिल जनविजय: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
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|रचनाकार=साईटर सीटोमौरांग<br />
|अनुवादक=श्रीविलास सिंह<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
चालीस क़ैदी उतरते हैं दो ट्रकों से <br />
अनुशासित तरीके से <br />
जेल के दरवाज़े के सामने । <br />
<br />
खुलता है विशाल प्रवेश द्वार <br />
<br />
सब कुछ होता है ठीक से, आदेश के अनुसार <br />
(वापस जा रहे ट्रकों की आवाज़ में <br />
दब जाती है पंक्तियों की गिनती की ध्वनि) <br />
<br />
कमाण्डर घूरता है क़ैदियों को एक एक कर <br />
जब वे चल रहे हैं पंजों के बल <br />
पराजितों का अनन्तकालीन विन्यास<br />
<br />
मैं हूँ उनमें से एक <br />
क़दम रखता अपने ही ह्रदय की दहलीज़ पर <br />
अतीत और वर्तमान के प्रवेश द्वार से <br />
<br />
अस्तित्व का एक क्षण <br />
मनुष्य बन्दी बनाता हुआ मनुष्य को<br />
<br />
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह'''<br />
<br />
''' लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी अनुवाद में पढ़िए'''<br />
Sitor Situmorang <br />
Gateway<br />
<br />
Forty detainees step down from two trucks<br />
in ordered fashion<br />
before the prison door.<br />
The massive gateway gapes.<br />
<br />
All goes smoothly, according to command<br />
(the roar of the trucks now leaving<br />
overpower the sound of the rows counting off)<br />
<br />
The commander stares at the detainees, one by one,<br />
as they walk by in twos<br />
the eternal formation of the vanquished.<br />
<br />
I am one of them<br />
stepping over the threshold of my own heart<br />
through the gateway between past and present<br />
<br />
The single moment of existence<br />
Man imprisoning man.<br />
<br />
1977<br />
</poem></div>अनिल जनविजयhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%88%E0%A4%9F%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%AE%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%97साईटर सीटोमौरांग2024-03-26T10:26:33Z<p>अनिल जनविजय: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKParichay<br />
|चित्र=Sitor Situmorang.jpg<br />
|नाम=साईटर सीटोमौरांग<br />
|उपनाम=Sitor Situmorang<br />
|जन्म=2 अक्तूबर 1923<br />
|जन्मस्थान=हरिअनबोहो, उत्तरी सुमात्रा, इण्डोनेशिया<br />
|मृत्यु=21 दिसम्बर 2014<br />
|कृतियाँ=हरे काग़ज़ पर लिखे ख़त (1953), kavitaaoM ke bIc (1955), अनाम छवि (1956), नई सदी (1961), समय की दीवार (1976), सफ़रनामा (1976), रात में पेरिस (2001) — सभी कविता-संग्रह। 1965 में लेखों का संग्रह ’क्रान्तिकारी साहित्य’ प्रकाशित हुआ। इसके अलावा तीन नाटक भी प्रकाशित हुए — मोतियों भरा रास्ता, आख़िरी मोर्चाबन्दी (1954), पत्थरों का द्वीप (1954)। एक कहानी-संग्रह — पेरिस में हुई हार और हिमपात (1956) <br />
|विविध=कवि, नाटककार, आलोचक। हालाँकि साईटर सीटोमौरांग ने 1949 में लिखना शुरू किया, लेकिन फिर भी वे ’पैंतालिस की पीढ़ी’ काव्य-आन्दोलन के सहभागी रहे। 1963 में काहिरा के एशियाई व अफ़्रीकी लेखक सम्मेलन में भाग लेनेवाले इण्डोनेशियाई लेखकों के दल की अगुआई की। पिछले सदी के छठे दशक में फ़्रांस में चले अस्तित्त्ववादी और प्रतीकवादी आन्दोलनों के प्रभाव में रहे। इण्डोनेशियाई थियेटर अकादेमी में अध्यापन किया। 1966 में सुकार्तो के पतन के बाद सत्ता हथियाने वाले सैन्य चौगुटे ने साईटर को भी गिरफ़्तार करके दस साल तक सालेम्बा जेल में रखा। फिर जेल से रिहा होने के बाद वे दो साल तक अपने ही घर में नज़रबन्द रहे। फिर 1982 में हॉलैण्ड चले गए और वहाँ लेयडेन विश्वविद्यालय में इण्डोनेशियाई भाषा पढ़ाने लगे। 1955 में इन्हें इण्डोनेशिया का ’राष्ट्रीय साहित्य पुरस्कार मिला तथा 1976 में जकार्ता कला परिषद का पुरस्कार।<br />
|जीवनी=[[साईटर सीटोमौरांग / परिचय]]<br />
|अंग्रेज़ीनाम=Sitor Situmorang<br />
|shorturl=<br />
|gadyakosh=<br />
|copyright=<br />
}}<br />
====कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ====<br />
* [[प्रवेश द्वार / साईटर सीटोमौरांग / श्रीविलास सिंह]]</div>अनिल जनविजयhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF_/_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AFवैभव भारतीय / परिचय2024-03-24T19:21:44Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय }} <poem> मेरा नाम वैभव भार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
}}<br />
<poem><br />
मेरा नाम वैभव भारतीय है। मैं अयोध्या, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मेरी औपचारिक शिक्षा-दीक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, BHU और हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से हुई है। मनोविज्ञान और साहित्य में परास्नातक हूँ और वर्तमान में पूर्वोत्तर भारत पर PhD कर रहा हूँ। समकालीन विषयों रचनात्मक तरीक़े से कहे जाने वाले कहन में मेरी विशेष रुचि है। मेरी कविता संग्रह 'स्याह रातों के क़िस्से' हिमालय की अंधेरी, काली और ठंडी रातों में लिखे गये वह क़िस्से हैं जब लेखनी सही-ग़लत, अच्छा-बुरा, पॉजिटिव-नेगटिव की बाइनरी से ऊपर उठकर, कुछ भी मिलावटी लिखने से इंकार कर देती है। जब वह सिर्फ़ ठेठ और ईमानदार अनुभवों की गवाही उगलती है। जब चीड़ और देवदार के पेड़ से छनकर मेरे कमरे की खिड़की से आती चाँदनी भी हृदय को ठंडक देने से इंकार कर देती है। जब अरस्तू का कथारिसिस और पंत के पहले कवि का वियोग यथार्थ लगता है। इस काव्य संग्रह में उन कालजयी मुद्दों को जगह मिली है जो हमारे जीवन की दशा-दिशा निर्धारित करते हैं जैसे प्रेम, दर्शन और राजनीति।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B9%E0%A4%B5%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A5%8C%E0%A4%A8_%E0%A4%AB%E0%A4%BF%E0%A4%B0_%E0%A4%A4%E0%A5%8C%E0%A4%B2_%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFहवा कौन फिर तौल रहा / वैभव भारतीय2024-03-24T19:17:12Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
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<poem><br />
जब सबको ही प्यार चाहिए <br />
धोखे कौन बनाता है फिर<br />
सबको है झूठों से नफ़रत<br />
झूठ कौन फैलाता है फिर? <br />
<br />
जब उजियारों के सब क़ायल <br />
जब सबकी इच्छा जीने की <br />
तो कौन वहाँ अन्धियारों से <br />
जीवन रस सबका खींच रहा? <br />
<br />
सब मधुर-मधुर सुनना चाहें <br />
तो कौन विष-बुझा बोल रहा<br />
जब सब गणना से असहज हैं <br />
तो हवा कौन फिर तौल रहा?<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%95%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE_%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%A0%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFकच्चा चिट्ठा / वैभव भारतीय2024-03-24T19:16:55Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
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|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
जान गये तुम सब-कुछ मेरा<br />
मैं ही ख़ुद को जान ना पाया<br />
दुनिया का चेहरा मैं पढ़ता <br />
ख़ुद का चेहरा ना पढ़ पाया। <br />
<br />
मैंने कइयों बरस बिताया<br />
ख़ुद से ख़ुद को बहुत मिलाया<br />
पर रोज़ लगा कि बिम्ब कोई <br />
हर बार छूट ही जाता है। <br />
<br />
बस चंद झलकियों में खोकर<br />
अफ़वाह-ताल से जल लेकर<br />
तुम एक वर्ष में तोल गए<br />
सब कच्चा चिट्ठा खोल गए। <br />
<br />
सच-मुच ही जान गये मुझको? <br />
या बस कोरी बदमाशी है <br />
तुमने अपनी सुविधा ख़ातिर<br />
तथ्यों से की ऐयाशी है। <br />
<br />
जितना सच ख़ुद को मुक्त करे<br />
इस अहम-क्षुधा को तृप्त करे<br />
बस उतने से ही मतलब है <br />
ये ही इंसानी फ़ितरत है। <br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%A4_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%95%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFमोहब्बत का क़िस्सा / वैभव भारतीय2024-03-24T19:16:36Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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}}<br />
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<poem><br />
क़िस्सा मोहब्बत का ना होता तो बता देता<br />
मैं ख़ुद ग़ुमशुदा ना होता तो पता देता। <br />
<br />
यहाँ तक आते-आते उतर जाते हैं कितनों के वसंत<br />
मैं अकेला बेरंग हुआ होता तो बता देता। <br />
<br />
पता मुझको भी सब है बस बताता नही।<br />
बताने की शर्त ना होती तो बता देता।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%A7_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFजिनके जीवन में युद्ध नहीं / वैभव भारतीय2024-03-24T19:16:18Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
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|संग्रह=<br />
}}<br />
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<poem><br />
जिनके जीवन में युद्ध नहीं<br />
उन-सा हतभागी क्या होगा<br />
जो चुक जाते हैं बिस्तर पर<br />
उन-सा अपराधी क्या होगा। <br />
<br />
जीवन इक रण है अंतहीन <br />
हर क्षण बस डटकर लड़ना है<br />
घुन चाल गये शहतीरों से<br />
पत्थर को छलनी करना है। <br />
<br />
हे शांति-शांति रटने वालों! <br />
क्या जीतेजी पा सकते हो? <br />
कितने तप श्रेष्ठी खर्च हुए<br />
इसका मापन कर सकते हो? <br />
<br />
युद्ध तपस्वी भी करता है <br />
तत्व अलग होने से क्या<br />
कोई युद्धों से बच पाया है? <br />
हथियार अलग होने से क्या। <br />
<br />
उनको भी तो है शान्ति नहीं <br />
बस आँख मूँद कर बैठे हैं<br />
है आँख खोलने की देरी <br />
दुश्मन भिड़ने को बैठे हैं। <br />
मूँदी आँखों का युद्ध अलग<br />
जो सबसे भीषण होता है <br />
ख़ुद से लड़कर विजयी होना<br />
ये सबसे दुष्कर होता है। <br />
<br />
जब तक शरीर में श्वास रही <br />
हमको बस लड़ना पड़ता है <br />
इसे युद्ध कहें या मज़दूरी<br />
हर दिन ही करना पड़ता है। <br />
<br />
ये भी तो एक यथार्थ रहा <br />
मौतें बिस्तर पर होती हैं <br />
जो लड़ बैठा कुछ कर बैठा <br />
बाधाएँ रोना रोती हैं। <br />
<br />
जब पुरुष हिरण्यगर्भ वाला <br />
रचना करने बैठा होगा <br />
कुछ रचने से पहले वह भी<br />
हर पंगत पर ठिठका होगा। <br />
<br />
जब कुछ नहीं था सृष्टि में <br />
बस घुप्प अँधेरा था पसरा <br />
अनहद की हद के लिए पुरुष <br />
भी युद्धों में संलग्न रहा।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A4%A8_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFअरण्य रोदन / वैभव भारतीय2024-03-24T19:15:57Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|अनुवादक=<br />
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}}<br />
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<poem><br />
अरण्य रोदन<br />
मन का शोधन <br />
हर सिसकी, <br />
जंगल सुनता है। <br />
हर हिचकी<br />
ईश्वर बुनता है।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%8F%E0%A4%95_%E0%A4%B5%E0%A4%95%E0%A4%BC%E0%A5%8D%E0%A4%A4_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A4_%E0%A4%AC%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%8A%E0%A4%81_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFएक वक़्त की बात बताऊँ / वैभव भारतीय2024-03-24T19:15:43Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<div>{{KKGlobal}}<br />
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|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
एक वक़्त की बात बताऊँ<br />
यादों के घोड़े दौड़ाऊँ<br />
जब मैं भी बच्चा होता था <br />
गणना का कच्चा होता था। <br />
<br />
हर साँस का कोई मतलब था<br />
हर दिन इक बढ़िया करतब था<br />
जब नींद पुकारा करती थी <br />
चट-पट बाहों में भरती थी। <br />
<br />
जब यारी थी गुड की भेली <br />
मैं मन से खाया करता था <br />
सइकिल के पहिये में भरकर<br />
दुनिया को नचाया करता था। <br />
<br />
उस समय अगर तुम मिल जाते <br />
तो क्या बढ़िया मंज़र होता <br />
सब प्रश्न तुम्हारे चुक जाते <br />
उत्तर का भी उत्तर होता। <br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%A4_%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%A6%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%87_%E0%A4%B9%E0%A4%95%E0%A4%BC_%E0%A4%95%E0%A5%80_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFश्वेत चाँदनी मेरे हक़ की / वैभव भारतीय2024-03-24T19:15:24Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<poem><br />
श्वेत चाँदनी मेरे हक़ की<br />
उजियारा किसको देती है <br />
काली रातों में इठलाकर<br />
आमंत्रण किसका लेती है। <br />
<br />
ये धवल चाँदनी चीड़ों से <br />
छनकर जो घर में है आयी<br />
फिर देवदार पर जा बैठी<br />
कुछ अलसायी कुछ हुलसायी। <br />
<br />
मैं रात-रात भर क्यों जगकर<br />
टकटकी बाँध उस खिड़की पर<br />
मैं किसको देखा करता हूँ <br />
किसका तन-चेहरा गढ़ता हूँ। <br />
<br />
ये ठंडी-ठंडी धूप यहाँ <br />
किसको गर्मी देने आयी<br />
हिमकण के उजले चादर पर<br />
किसका सर्वस हरने आयी। <br />
<br />
इन सब प्रश्नों का मकड़जाल<br />
इक बात अनूठी करता है<br />
चाँदनी रात की गर्मी को <br />
हरपल उदघाटित करता है।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A6_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%89%E0%A4%B8_%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A5%88_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFदर्द के उस पार क्या है / वैभव भारतीय2024-03-24T19:15:04Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
दर्द के उस पार क्या है<br />
झांक लो जब भी समय हो<br />
कुछ बड़ा ही शुभ मिलेगा<br />
दर्द का संपुट मिलेगा। <br />
<br />
दर्द अथश्री है कथा की <br />
इक नया शुरुआत करती <br />
हर प्रसव पीड़ा यहाँ <br />
नव-सृष्टि का आग़ाज़ करती। <br />
<br />
दर्द क्या इक साक्ष्य है कि <br />
साँस अब तक चल रही है <br />
दर्द क्या इक आँच है कि<br />
आग अब तक जल रही है। <br />
<br />
दर्द भावों की कसौटी<br />
शुद्ध सब कुछ छान लाता<br />
हर मिलावट भस्म करता<br />
मृत सुरों में प्राण लाता। <br />
<br />
दर्द दुनिया की शपथ है <br />
अंजुली में सीख भरके<br />
बस वही आबाद होता<br />
पी चुका जो पीस करके।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%AF_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%AA%E0%A4%B0_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFमिला हिमालय के रस्तों पर / वैभव भारतीय2024-03-24T18:42:33Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
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}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
मिला हिमालय के रस्तों पर <br />
केशकम्बली कुबड़ी वाला<br />
मुझसे बोला राह बताओ<br />
उस टूटे शिव-मंदिर वाला। <br />
<br />
मैंने बोला बाबा तुम भी <br />
क्यों जाओगे खंडहरों में <br />
वो तो बस सुनसान पड़ा है<br />
वर्षों से वीरान पड़ा है। <br />
<br />
उस मंदिर से शिव चले गये<br />
वर्षों पहले कैलाशों में <br />
मंदिर की हर इक ईंट गिरी <br />
शिव क्यों विचरेंगे लाशों में। <br />
<br />
बाबा ज़रा बिफडकर बोले<br />
क्यों प्रलाप करते हो बच्चा! <br />
शिव औघड़ है शिव फक्कड़ हैं<br />
सब उनका है बुरा या अच्छा। <br />
<br />
शिव को क्या गर छत उजड़ गई<br />
सारा नभ ही उनका छत है <br />
जो शिव को आश्रय दे पाये<br />
ऐसा मंदिर बस इक हठ है। <br />
मंदिर तो बस इक ज़रिया है <br />
हम तुच्छ मानवों की ख़ातिर <br />
मन-घोड़े को हम बाँध सके <br />
शिवशम्भु से मिल लें आख़िर। <br />
<br />
शिव जंगलियों के स्वामी हैं<br />
बेघर पुरुषों के आदिपुरुष <br />
वो खुले आकाशों के स्वामी<br />
तप, त्याग, विरह के राजपुरुष। <br />
<br />
जनजाति जिसे आराध्य मान<br />
सब पाठ प्रकृति का लेते है <br />
उसको क्या महल खंडहर क्या <br />
शिव हर ज़र्रे में होते हैं। <br />
<br />
यदि मंदिर है खण्डहर मात्र<br />
शिव धूनी भी मिल जाएगी<br />
सब शिवम् सुंदरम् सत्यम का<br />
अनुबन्ध वहीं करवाएगी।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0_%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%9F%E0%A4%BE_%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A5%88_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFभवसागर लोटा लगता है / वैभव भारतीय2024-03-24T18:42:11Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
एक तुम्हारा दुःख मिलने से<br />
कितने दुःख बे-वजन हो गये<br />
सब कुछ अब छोटा लगता है <br />
भवसागर लोटा लगता है। <br />
<br />
सब बातें है लाचार हुई <br />
कुछ भी ना हल कर पाती हैं <br />
बस मौन बची इक आशा है<br />
जो हर पल बढ़ती जाती है। <br />
<br />
तेरी अंगड़ाई का क़ायल<br />
ये अंगड़ाई भी सह लूँगा <br />
फिर कभी शिकायत ना होगी <br />
सब कुछ मन में ही कह लूँगा।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2_%E0%A4%A2%E0%A5%82%E0%A4%81%E0%A4%A2_%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A5%88_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFमेरी मंज़िल ढूँढ रही है / वैभव भारतीय2024-03-24T18:41:55Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
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}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
मेरी मंज़िल ढूँढ रही है<br />
अपना रस्ता मयखानों में<br />
तूफ़ानों में, चट्टानों में <br />
हिमआलय की स्याह गुफा में<br />
भटकी हुई किसी नौका में<br />
महानगर के इक हॉटल में<br />
लाँग-ड्राइव वाली मॉटल में <br />
दूर गाँव की पगडंडी में<br />
बर्फीली काली ठंडी में<br />
मेघालय वाली बारिश में<br />
मरू भूमि की लाल तपिश में, <br />
<br />
पर इन सबसे क्या होना है<br />
मुझको तो बस मैं होना है<br />
कैसी मंज़िल क्या है रस्ता<br />
जो होना है सो होना है।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AC%E0%A4%B8_%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A0_%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A5%87_%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%8F_%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFबस कंठ नीले ना हुए हैं / वैभव भारतीय2024-03-24T18:40:53Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
ज़हर हम सबने पिया <br />
बस कंठ नीले ना हुए हैं <br />
जी गया सुकरात बस<br />
दर्शन नशीले हो गये हैं। <br />
<br />
क्यों कहो दुनिया अजब है <br />
महज़ गिनती में सजग है<br />
जब तलक है साँस जग में <br />
तुम अलग हो, सब अलग हैं। <br />
<br />
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा<br />
युद्धों से कुछ-कुछ मेला खाता<br />
रख दिये हथियार जिसने<br />
रह गया वह ही अभागा।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B8%E0%A4%AC_%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%9F_%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%97%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFसब अंधियारा मिट जाएगा / वैभव भारतीय2024-03-24T18:40:35Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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}}<br />
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<poem><br />
सब अंधियारा मिट जाएगा<br />
अंधियारे में देखो घुसकर <br />
तुम ब्रह्मांड विजेता होगे <br />
हारो सबकुछ किसी चीज़ पर। <br />
<br />
ये दुनिया का दायाँ बायाँ<br />
हर पल ही रंग बदलता है<br />
उजियाले सूरज का गोला <br />
कालिख इक रोज़ उगलता है। <br />
<br />
सब नज़रों का ही खेल रहा <br />
गोरा-काला इक सोच रही<br />
पत्थर होता सुरख़ाब यहाँ <br />
दिग्गज बन जाते रेत यहीं। <br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%87_%E0%A4%95%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%81_%E0%A4%AE%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%9F%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFकिसे कहूँ मन का सन्नाटा / वैभव भारतीय2024-03-24T18:38:53Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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}}<br />
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<poem><br />
किसे कहूँ मन का सन्नाटा<br />
दिल का दरिया कहाँ बहाऊँ <br />
किसको समझाऊँ मैं जीवन<br />
मुद्दा किस संसद में लाऊँ। <br />
<br />
सब बीस हाथ से दुनिया को<br />
जैसे बटोरने निकले हैं <br />
सब घाट-घाट पर नदिया को <br />
जैसे निचोड़ने निकले हैं<br />
भावों का विनिमय कुफ़्र हुआ<br />
सब को बस लेना होता है <br />
छल-माया की माला में बस<br />
इक फूल पिरोना होता है। <br />
<br />
अब दुनिया-दुनिया क्या रोना<br />
इस क्रन्दन से अब क्या होना<br />
सब नज़रों की ऐयारी है <br />
ज़िम्मेवारी किसको देना <br />
जैसी भी है ये दुनिया है <br />
सब कुछ दुनिया का क़िस्सा है <br />
जितना हिस्सा सच ने पाया <br />
झूठे का उतना हिस्सा है।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A5%88_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFजीवन क्या है / वैभव भारतीय2024-03-23T18:31:06Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<div>{{KKGlobal}}<br />
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}}<br />
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<poem><br />
जीवन क्या है <br />
प्रश्न विकट है<br />
ये मृत्यु के परम निकट है। <br />
<br />
कोई मदमाता-सा पक्षी <br />
अंधड़ तूफ़ानों में घिरकर<br />
पत्थर जैसी बारिश सहकर<br />
भूखा रहकर, प्यासा रहकर <br />
चक्रवात से चोंच लड़ाए<br />
प्रलय-काल को धता बताये<br />
तब यह शब्द अर्थ लेता है <br />
जीवन परिभाषित होता है। <br />
<br />
कोई नौसिखिया बचपन में<br />
मठाधीश पंडों के आगे<br />
प्रेम दया मानवता ख़ातिर <br />
दुनिया के सारे तर्कों को <br />
दुनिया की सारी गणना को<br />
पल भर में बकवास बताये<br />
तब यह शब्द अर्थ लाता है<br />
जीवन फिर जीवन पाता है।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B9_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%95%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A5%87_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFस्याह रातों के क़िस्से / वैभव भारतीय2024-03-23T18:30:48Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<div>{{KKGlobal}}<br />
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|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
रास्तों का असर हूँ जो चलता रहा <br />
मंज़िलों से निडर हूँ जो चलता रहा <br />
ज़िन्दगी में कई मोड़ आये मगर <br />
तू मिला उन सभी पर तो चलता रहा। <br />
<br />
पंक्तियों में नज़र आये चेहरा तेरा <br />
पृष्ठों का आवरण पाये चेहरा तेरा<br />
भागवत उपनिषद मैंने सारे पढ़े<br />
फ़लसफ़ा सारा दोहराए चेहरा तेरा।<br />
<br />
बस अधूरी कहानी मैं पढ़ता रहा <br />
चोट खाई जवानी मैं पढ़ता रहा<br />
कितनी नज़्में मुलाक़ात की छोड़कर <br />
फ़ासलों की रवानी मैं पढ़ता रहा। <br />
<br />
प्यार व्यापार है इक फ़ितूरी बिना<br />
ठंडा अंगार है इक फ़ितूरी बिना <br />
हाशिये पर पड़ा इक गणित द्वन्द का <br />
बायें का शून्य है इक फ़ितूरी बिना।<br />
<br />
तेरी आवाज़ ने जो किया क्या कहूँ<br />
इक नमाज़ी को साक़ी किया क्या कहूँ <br />
छोड़ कर वेद की श्रुति ऋचा छोड़कर <br />
प्यार कान्हा का धारण किया क्या कहूँ। <br />
<br />
महफ़िलों में तेरा नाम गाते रहें <br />
ख़ुद को खोया मगर तुमको पाते रहें <br />
तुमसे मिलना बिछड़ना तलब है मेरी <br />
तेरी आग़ोश में गुनगुनाते रहें।<br />
<br />
ये हमारा हृदय है सड़क तो नहीं <br />
कितने मसलों का हल है सड़क तो नहीं <br />
माना ग़म की सियाही बड़ी सुर्ख़ है <br />
रास्ता नज़्म का है सड़क तो नहीं।<br />
<br />
रात में धूप है दिन धुँधलका लगे<br />
शेर ग़ालिब का कुछ हल्का-हल्का लगे <br />
मामला सिर्फ़ मेरी तबीयत का है <br />
जाम अश्कों का फिर छलका-छलका लगे। <br />
<br />
धूप गालों में तेरे मलूँ जो कहे <br />
मेरे अश्क़ों से कर लूँ वजू जो कहे <br />
चाँद तारे सभी तोड़ते हैं मगर <br />
कायनातों को वश में करूँ जो कहे। <br />
<br />
वक़्त की रेत में क़ैद है ज़िंदगी <br />
आशिक़ी का मुअज़्ज़न बनी ज़िंदगी <br />
अब तो आती हँसी हर इबादत पर है <br />
इक दुआ का सबब है बनी ज़िंदगी। <br />
<br />
<br />
तेरा मिलना-बिछड़ना बड़ा खेल है<br />
मस्तियों में उखड़ना बड़ा खेल है <br />
कब तलक कोई रोये तेरी बात पर <br />
तेरा कहकर मुकरना बड़ा खेल है। <br />
<br />
राह कोई भी हो मन भटकता नहीं <br />
शेर पिंजरे में अब यूँ तड़पता नहीं <br />
कितनी शामें तेरे नाम पर लुट गयीं<br />
दिल किसी बात पर अब धड़कता नहीं। <br />
<br />
कुछ नया क्या कहूँ सब कहा जा चुका <br />
हर नुमाइश का क़िस्सा पढ़ा जा चुका <br />
इक हमारी कहानी बची शेष है<br />
हर कहानी का मज़मू गढ़ा जा चुका।<br />
<br />
इक तेरा नाम लब पर जो आया कभी <br />
नज़्म बनकर के दुनिया में छाया वही <br />
सर्द रातों की काली सियाही लिए <br />
इश्क़ बनकर के सैलाब लाया वही। <br />
<br />
हम जो सुनते रहे तुम सुनाते रहे<br />
चाल दुनिया की हमको सिखाते रहे<br />
डूब कर कीचड़ों में गले तक स्वयं <br />
राह गंगा की हमको बताते रहे। <br />
<br />
<br />
तुमको चाहा मगर तुमको पाया नहीं <br />
आशिक़ी का ये क़िस्सा पराया नहीं<br />
है हृदय में अमन सिर्फ़ इस बात का<br />
पूरा होके बचा कुछ बकाया नहीं।<br />
<br />
तू हवा मैं ज़मी तू कहाँ मैं कहीं <br />
तू जो आबाद है मैं फ़ना हर कहीं <br />
है तू दक्कन मैं उत्तर का वासी प्रिये! <br />
तू दवा दर्द मैं हर तरफ़ हर कहीं। <br />
<br />
मैंने खोया बहुत मैंने पाया बहुत <br />
तेरी यादों ने हर दिन सताया बहुत<br />
गोद में तेरे सोना भी इक स्वर्ग है<br />
सोने की इस तलब ने जगाया बहुत। <br />
<br />
तू बहुत दूर है या बहुत पास है <br />
बीच का सारा क़िस्सा ही बकवास है <br />
दुनिया कुछ भी कहे इस नये तर्क पर<br />
आशिक़ी का अलग ही गुणा-भाग है। <br />
<br />
मन को मारा बहुत तन खपाया बहुत <br />
सर्द रातों ने मुझ को तपाया बहुत <br />
दिल का पत्थर अकड़कर हिमालय हुआ<br />
फिर हिमालय ने गंगा बहाया बहुत। <br />
<br />
स्याह रातों के क़िस्से कहूँ ना कहूँ <br />
चाहतों के वह हिस्से कहूँ ना कहूँ <br />
कंठ नीले नहीं हैं तो क्या हो गया <br />
पी गया हूँ हलाहल कहूँ ना कहूँ। <br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8B_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFप्रश्न करो / वैभव भारतीय2024-03-23T18:29:20Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
प्रश्न करो, उस हर उत्तर से <br />
जो प्रश्नों को चुप करवाये<br />
जो काग़ज़ की नाव चलाये<br />
दाग लगाये, जाल बिछाए <br />
घुल-मिलकर दंगे करवाये<br />
जो सूरज पर कालिख पोते <br />
तर्कों को सुनकर बस रो दे। <br />
<br />
प्रश्न करो हर प्यासे मन से<br />
उसके क्या हैं राज़ पुराने <br />
क्यों वह बस प्यासा रहता है<br />
दस हाथों से क्यों दुनिया को<br />
पाने की आशा रखता है<br />
क्यों उसके हैं खेल निराले<br />
क्यों बुनता है ताने बाने<br />
मिला नहीं जो उसको सोना <br />
मिल जाये तो पत्थर माने। <br />
<br />
प्रश्न करो हँसते चेहरों से <br />
क्या मज़बूरी है हसने की<br />
क्या हो जाएगा हँसने से? <br />
दुनिया की नज़रों से बचके<br />
मन रोता है मुख हँसता है<br />
अर्धज्ञान वाला अभिमन्यु <br />
अपने लिए व्यूह रचता है? <br />
इन नासाज़ हरकतों से बस <br />
दुनिया उलझाऊ होती है<br />
इन सारी करतूतों से बस <br />
मानवता काँटा बोती है। <br />
प्रश्न करो दुनिया वालों से<br />
क्यों इतने अशांत रहते है<br />
क्या गणना करते रहते हैं<br />
ऐसे क्यों वितान रचते हैं <br />
सब अच्छा कहना पड़ता है<br />
माया-छल रचना पड़ता है <br />
दिल रोता है मन रोटा है<br />
चेहरे को हँसना पड़ता है <br />
<br />
प्रश्न करो अपनी नीयत से <br />
ऐसी क्या है क़यामत आयी <br />
क्यों चालाकी हर पल छाई<br />
क्यों गुणा गणित में लगता मन <br />
सादगी-सत्य से डरता मन <br />
क्यों अंधियारी रातों में उसके <br />
नख आयुध है उगआते<br />
क्यों भरी दोपहरी में उसको<br />
उजियारे हैं कम पड़ जाते। <br />
<br />
सच ये है कि कोई प्रश्न नहीं <br />
ये मानवता का रोदन है<br />
उत्तर तो धरता सहज मौन<br />
हर इक नीयत का शोधन है। <br />
दुनिया है तो दुख है सुख है <br />
दुनिया है तो सब पाप पुण्य<br />
दुनिया है तो है लाख प्रश्न<br />
वरना सबकुछ है महाशून्य।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8B_%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFसुनो मान्धाता / वैभव भारतीय2024-03-23T18:28:51Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
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|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
सुनो मान्धाता! <br />
सुना है कि तुमने ये जीती थी दुनिया।<br />
नहीं छोड़ा कुछ भी<br />
नदी वृक्ष पर्वत<br />
मरू खोह बंजर<br />
दसीयों दिशायें <br />
गगनपाल, दिकपाल <br />
सबको था जीता<br />
नहीं कुछ था बाक़ी। <br />
<br />
लिए जब चले थे <br />
तुम चतुरंगिणी को<br />
व अक्षौहिणी को <br />
गगन खूब गूंजा<br />
धरा खूब काँपी<br />
थी लय दुमदुभी की<br />
बजे खूब मादल<br />
थे युद्धों के बादल। <br />
<br />
मगर मैंने चाहा कि देखूँगा फिर से।<br />
ये दुनिया ये धंधा <br />
ये माया का फंदा<br />
ये पाने की ख़ुशियाँ <br />
ये खोने का रोना<br />
ये पूछूँगा तुमसे<br />
कि क्या पाया तुमने <br />
कि क्या खोया तुमने। <br />
क्या सचमुच ही जीता <br />
था तुमने धरा को? <br />
क्या पृथ्वी महज़ है<br />
ये मिट्टी की गोली<br />
था जैसा भी चाहा <br />
नचाया था उसको<br />
या पृथ्वी समुच्चय है <br />
श्वासों का सस्वर? <br />
क्या तुमको पता था? <br />
इसी कुल में राघव <br />
जन्म लेंगे इक दिन <br />
जो त्यागेंगे सिय को<br />
प्रजारंजन हेतु। <br />
बताया तो होगा <br />
किसी दिन गुरु ने। <br />
हुआ कैसे इतना <br />
था अंतर हृदय में? <br />
की लेकर चले थे <br />
फ़तह करने पृथ्वी <br />
सकल सैन्य बल को। <br />
क्या। <br />
शिला जीतना ही धरा जीतना है? <br />
चला है कभी जो ये पहिया समय का <br />
बचा है ना कुछ भी<br />
सिवा सीयपति के।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%96%E0%A4%BE_%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%96%E0%A4%BE_%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B9%E0%A4%B0_%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%96%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFतीखा तीखा ज़हर सरीखा / वैभव भारतीय2024-03-23T18:28:24Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
तीखा तीखा ज़हर सरीखा, <br />
कुछ खायें तो बात बनें, <br />
मर जायें तो बात बनें। <br />
<br />
बेशक कोई आवारा होगा, <br />
पर अपनो को प्यारा होगा, <br />
कौन बहकता है बेमतलब, <br />
कुछ तो तेरा इशारा होगा, <br />
इन्हीं इशारों में फँस-फँस कर, <br />
गश खायें तो बात बने, <br />
मर जाएँ तो बात बने। <br />
<br />
सर्द रात में नदी किनारे, <br />
यारों के संग आग तापते, <br />
मिनट-मिनट के बीस ठहाके, <br />
कुछ ताज़ी कुछ बासी बातें, <br />
और नदी की उस कलकल में, <br />
चिल्लायें तो बात बने, <br />
मर जाएँ तो बात बने। <br />
<br />
उस पहाड़ की वह पगडंडी, <br />
काली-काली ठण्डी-ठण्डी, <br />
पाइन के उस पेड़ के ऊपर, <br />
नाम लिखा शत बार तुम्हारा, <br />
कालेपन में उस पहाड़ के, <br />
घुल जाएँ तो बात बने, <br />
मर जाएँ तो बात बने। <br />
<br />
बात अभी तो कल की ही है, <br />
महफ़िल पूरी जमी हुए थी, <br />
एक मुहलगा मित्र हमारा, <br />
पूछ लिया है नाम ज़हर का, <br />
फिर पसरा तगड़ा सन्नाटा, <br />
उत्तर के इस सन्नाटे में, <br />
खो जाएँ तो बात बने, <br />
मर जाएँ तो बात बने।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%89%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%88_%E0%A4%9A%E0%A5%8C%E0%A4%96%E0%A4%9F_/_%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AD%E0%A4%B5_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AFउम्मीदों की खोई चौखट / वैभव भारतीय2024-03-23T18:27:54Z<p>सशुल्क योगदानकर्ता ५: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वैभव भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=वैभव भारतीय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
उम्मीदों की खोई चौखट <br />
ना जाने किस ओर मिलेगी <br />
दौड़ा भागा, सब कुछ त्यागा<br />
बहुत किया है सैर सपाटा <br />
ख़ुद को भी टुकड़ों में बाँटा <br />
प्रेम पाश की लेकर दीक्षा<br />
निश-दिन करते रहे तपस्या <br />
इस रतजागे को उषा की किरण<br />
कहाँ किस ओर मिलेगी <br />
उम्मीदों की खोई चौखट <br />
क्या जाने किस ओर मिलेगी? <br />
<br />
यारों ने सब कुछ समझाया <br />
हानि बताया लाभ गिनाया <br />
इस किस्से का अन्त यही है <br />
प्रेम कथा का ध्वंस यही है <br />
हर हंसती सूरत दुनिया में<br />
इक टूटे दिल का तोहफ़ा है <br />
तोहफ़ा है, या एक सजा है? <br />
तोहफ़े और सजा की उलझन<br />
रब जाने किससे हल होगी <br />
उम्मीदों की खोई चौखट <br />
ना जाने किस ओर मिलेगी। <br />
<br />
कितना हुंकार भरे कोई <br />
पानी अंगार करे कोई <br />
जो बीत गई सो बात गई<br />
आ गया दिवस वह रात गई <br />
रातों के काले किस्से भी <br />
उजियारों का ही हिस्सा है <br />
ये बात समझने में मन को<br />
कुछ सदियों की चाहत होगी <br />
उम्मीदों की खोई चौखट <br />
ना जाने किस ओर मिलेगी।<br />
</poem></div>सशुल्क योगदानकर्ता ५http://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B8_%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A8_%E0%A4%A8%E0%A5%87_%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82_%E0%A4%B0%E0%A4%81%E0%A4%97%E0%A5%87_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFकिस नाइन ने हैं रँगे / राहुल शिवाय2024-03-23T11:31:46Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
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<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=राहुल शिवाय <br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatDoha}}<br />
<poem><br />
किस नाइन ने हैं रँगे, इस पूरब के पाँव।<br />
जिसे देखने जग रहा, धीरे-धीरे गाँव।।<br />
<br />
कहन, भाव, चितवन, छुवन, ढोलक, ढोल, मृदंग।<br />
धीरे-धीरे रँग गये, सब फागुन के रंग।।<br />
<br />
हरी-पीत धरती हुई, टेसू जैसे गाल। <br />
नभ पर रंग पतंग का, धूसर हुआ गुलाल।। <br />
<br />
फूल, धूल औ भूल का, आया ज्यों त्योहार। <br />
साँकल खटकाने लगा, द्वार-द्वार शृंगार।।<br />
<br />
तन हल्दी से ज्यों रँगा, गयी कामना जाग।<br />
फिर क्या था अँगड़ाइयाँ, लगीं खेलने फाग।।<br />
<br />
लोक धुनों की चाशनी, दो-अर्थी संवाद।<br />
क़िस्से ताज़ा कर गयी, परदेसी की याद।।<br />
<br />
मनमोहन ने पास आ, ज्यों ही पूछा हाल।<br />
टेसू जैसे हो गये, उसके दोनों गाल।<br />
<br />
होली में जब प्रीत के, पूरे हुए उसूल।<br />
अधरों पर दिखने लगे, तब सेमल के फूल।।<br />
<br />
पायल की झनकार तब, और हो गई तेज़।<br />
पिचकारी से रँग गया, जब मन को रँगरेज़।।<br />
<br />
दो पंखुड़ियों ने किया, अधरों से संवाद।<br />
फागुन-फागुन हो गया, मन पैठा अवसाद।।<br />
<br />
अंग-अंग उड़ने लगा, जैसे उड़े गुलाल।<br />
बाहों में भर प्यार ने, जब भी चूमा गाल।।<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B8_%E0%A4%A8_%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%81%E0%A4%97%E0%A5%8B_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFदिवस न माँगो / राहुल शिवाय2024-03-23T10:55:30Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatGeet}}<br />
<poem><br />
पास तुम्हारे जाने पर यह डर लगता है<br />
वापस लौटूँगा तो कितना खल जाएगा<br />
<br />
कहाँ द्वारिका के पथ में<br />
वृंदावन आया<br />
मरुस्थलों के जीवन में<br />
कब सावन आया<br />
<br />
चार पलों में सदियों का सुख जी लेगें हम<br />
लेकिन युग जैसा फिर अपना पल जाएगा<br />
<br />
पूर्ण चन्द्र की चाह लिए <br />
हम जिये अमावस<br />
हृदय ताप से व्यथित रहा<br />
आँखों का पावस<br />
<br />
ऐसे में सोई पीड़ाएँ कौन जगाए <br />
शायद! दूर रहेंगे तो यह टल जाएगा<br />
<br />
स्वर्णिम आभाओं के ये <br />
अभिशापित सपने <br />
कितनी देर रहेंगे <br />
इन आँखों के अपने<br />
<br />
संध्या के परिदृश्य दृष्टि में तैर रहे हैं<br />
ऐसे में यह दिवस न माँगो, ढल जायेगा<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%94%E0%A4%B0_%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AE_%E0%A4%B9%E0%A5%8B_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFऔर तुम हो / राहुल शिवाय2024-03-23T10:54:29Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatGeet}}<br />
<poem><br />
खिलखिलाती <br />
धूप है मन की सतह पर<br />
एक कुहरीली सुबह है<br />
और तुम हो<br />
<br />
इस शिशिर में भी<br />
सुखों के भार से<br />
कंधे झुके हैं<br />
जो नयन थे<br />
सोंठ जैसे<br />
पुन: अदरक हो चुके हैं<br />
<br />
दृष्टि में नव-उत्सवों के <br />
रंग भरती <br />
आज रंगीली सुबह है<br />
और तुम हो<br />
<br />
पढ़ चुकी है<br />
रात हरसिंगार की<br />
सारी कहानी<br />
जी रही<br />
ईंगुर सजाकर <br />
नये जीवन की निशानी <br />
<br />
इस प्रणय को भोर का<br />
तारा दिखाती <br />
एक सपनीली सुबह है<br />
और तुम हो<br />
<br />
याद वे दिन<br />
आ रहे हैं<br />
तुम नहीं थे, बस शिशिर था<br />
बीतता था हर प्रहर<br />
मन में कहीं पर<br />
स्वयं थिर था<br />
<br />
चाय की हैं चुस्कियाँ<br />
अब अक्षरों पर<br />
साथ में गीली सुबह है<br />
और तुम हो<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AC%E0%A5%88%E0%A4%A0%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A5%88_%E0%A4%85%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFबैठा है अख़बार / राहुल शिवाय2024-03-23T10:52:38Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatGeet}}<br />
<poem><br />
एक चाय के<br />
इंतज़ार में<br />
बैठा है अख़बार<br />
<br />
खोज रही हैं<br />
कलियाँ कब से<br />
प्यारा-सा स्पर्श <br />
करी पत्तियाँ <br />
व्याकुल हैं<br />
रचने को स्वाद-विमर्श <br />
<br />
धीमे-धीमे <br />
बीत रहा है<br />
हम सब का इतवार<br />
<br />
खिड़की के<br />
पर्दाें से तय थी<br />
आज तुम्हारी बात<br />
मिलने को <br />
आतुर है छत पर<br />
तुमसे नवल प्रभात<br />
<br />
ताक रहे हैं<br />
पंथ तुम्हारा<br />
आँगन, छत, दीवार <br />
<br />
इस घर के <br />
कोने-कोने में<br />
पाया तुमने मित्र<br />
पर मेरी इन<br />
आँखों में भी <br />
जीवित एक चरित्र<br />
<br />
मेरी छुट्टी <br />
का भी तुमपर<br />
थोड़ा है अधिकार।<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%87_%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4_%E0%A4%B8%E0%A4%81%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%87_%E0%A4%B0%E0%A4%96%E0%A4%A8%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFमेरे गीत सँभाले रखना / राहुल शिवाय2024-03-23T10:51:17Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatGeet}}<br />
<poem><br />
मेरे गीत सँभाले रखना <br />
गीत न मेरे काम आ सके, <br />
ऐसा अवध रहा जीवन भर <br />
जहाँ न वापस राम आ सके<br />
<br />
दर्द, विरह, आँसू, तन्हाई <br />
किसे नहीं है <br />
चाहा मैंने<br />
मेरे घावों से तो पूछो <br />
किसको नहीं <br />
सराहा मैंने<br />
<br />
अनगिन पत्र लिखे जीवनभर<br />
लौट नहीं पैगाम आ सके<br />
<br />
मेरे गीत अहिल्या बनकर <br />
खोज रहे कबसे<br />
पग-चन्दन <br />
मेरे गीत किसी शबरी-सा<br />
चाह रहे <br />
करना अभिनंदन <br />
<br />
बहुत तपे हैं ये जीवन भर<br />
ज़रा देखना शाम आ सके<br />
<br />
गीत भटकता जीवन जिसने <br />
पाषाणों में <br />
प्रान भरा है<br />
जिसकी धाराओं पर अबतक <br />
चोटों से <br />
हर घाव हरा है <br />
<br />
पर इनका तो ध्येय यही है-<br />
कभी नहीं विश्राम आ सके<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%95%E0%A5%8C%E0%A4%A8_%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%9D%E0%A4%BE_%E0%A4%A6%E0%A5%80%E0%A4%AA_%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFकौन संझा दीप बारे / राहुल शिवाय2024-03-23T10:50:32Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatGeet}}<br />
<poem><br />
इस हृदय की देहरी सूनी पड़ी है<br />
बिन तुम्हारे कौन संझा दीप बारे<br />
<br />
सिलवटों के मौन अब<br />
कितने मुखर हैं<br />
कौन तुम बिन पर इन्हें आकर सुनेगा<br />
ले रही हैं चेतनाएँ<br />
भी उबासी <br />
कौन इनको कामना के पुष्प देगा<br />
<br />
तोड़कर प्रतिबंध अब अनहोनियों का<br />
कौन आशंकित विचारों को बुहारे<br />
<br />
तोड़ अन्विति नेह से<br />
कब तक जिएँगे<br />
प्राण भी नवप्राण पाना चाहते हैं<br />
जूट में अभिलाष <br />
हरसिंगार बनकर<br />
नेह-चूड़ामणि सजाना चाहते हैं<br />
<br />
वेदनाएँ, वेद की बनकर रिचाएँ<br />
कर रहीं अर्पित तुम्हें अधिकार सारे<br />
<br />
यह सकल जीवन नहीं है <br />
द्यूत जिसपर<br />
हार जाएँ हम प्रणय की आस्थाएँ<br />
हम नहीं अध्याय वो <br />
जो शेष होकर<br />
बाँचते जाएँ सतत अंतरकथाएँ<br />
<br />
प्रेम गीता-सार बन सम्मुख खड़ा है<br />
क्यों नहीं फिर बढ़ रहे हैं पग तुम्हारे<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AE_%E0%A4%B9%E0%A5%80_%E0%A4%B2%E0%A5%8C%E0%A4%9F_%E0%A4%86%E0%A4%8F_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFतुम ही लौट आए / राहुल शिवाय2024-03-23T10:49:58Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatGeet}}<br />
<poem><br />
यह नदी<br />
पग-पग महावर रच रही है<br />
इस नदी में पाँव क्या तुमने बढ़ाए?<br />
<br />
जन्म-जन्मों से<br />
तृषित हर याचना को<br />
पूर्ण तट की कामनाओं ने किया है<br />
कौन-सा<br />
उत्सव जगा है लहरियों में<br />
किस तरह यह ताप मन का हर लिया है<br />
<br />
इस हृदय का<br />
कौन अभिनंदन करेगा<br />
यों लगा जैसे कि तुम ही लौट आए।<br />
<br />
तोड़ हठ लहरें<br />
बढ़ीं मुझ ओर कैसे<br />
क्या इन्हें पुरवाइयों ने पत्र भेजे<br />
किस तरह<br />
सम्पर्क में वे आ गये हैं<br />
जो अलक्षित भाव थे हमने सहेजे<br />
<br />
तुम कहो<br />
संवाद के ये कुशल-कौशल<br />
कमल-कोषों को भला किसने सिखाये? <br />
<br />
सांझ होते <br />
इस नदी की हर लहर सँग<br />
नृत्य करती चाँदनी की भंगिमाएँ<br />
रूप के सारे कथानक <br />
भी वही हैं<br />
हैं तुम्हारे ही सदृश सारी कलाएँ<br />
<br />
यह रजत नूपुर पहन<br />
इस चाँदनी ने<br />
आस के दीपक भला क्यों जगमगाए? <br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%B0_%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFरास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय2024-03-23T10:38:22Z<p>Rahul Shivay: </p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKPustak<br />
|चित्र=<br />
|नाम=रास्ता बनकर रहा<br />
|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|प्रकाशक=<br />
|वर्ष=2024<br />
|भाषा=<br />
|विषय=<br />
|शैली=<br />
|पृष्ठ=<br />
|ISBN=<br />
|विविध=<br />
}}<br />
====प्रतिनिधि नवगीत====<br />
* [[आँधियों के ज़ोर पर सूरज बुझाने के लिए / राहुल शिवाय]]<br />
* [[वो तो हम सब को ही आपस में लड़ा देता है / राहुल शिवाय]]<br />
* [[घुप अँधेरा है मगर तू रोशनी को ढूँढ ले / राहुल शिवाय]]<br />
* [[रंग चाहे जो भी हों किरदारों की दस्तार में / राहुल शिवाय]]<br />
* [[नये अहसास के मंज़र, जवां ख़्वाबों का गुलदस्ता / राहुल शिवाय]]<br />
* [[अँधेरी रात का मातम है इन उजालों में / राहुल शिवाय]]<br />
* [[मेमनों के जो बड़े नाख़ून करना चाहते हैं / राहुल शिवाय]]<br />
* [[वो सामने थी मेरे खेलती नदी की तरह / राहुल शिवाय]]<br />
* [[झूठ की हो न जाए फ़तह आज फिर / राहुल शिवाय]]<br />
* [[सूरज के पाँवों में मुझे छाला नहीं मिला / राहुल शिवाय]]<br />
* [[मैं तुम्हारी महफ़िलों में बस, हवा बनकर रहा / राहुल शिवाय]]<br />
* [[वो अपने ज़िन्दगी भर की कमाई दे रहा है / राहुल शिवाय]]<br />
* [[नये चेहरे यहाँ ऐसे भी निर्मित हो रहे हैं / राहुल शिवाय]]<br />
* [[जब कभी प्रतिरोध में जंगल खड़े हो जाएँगे / राहुल शिवाय]]<br />
* [[प्रगति की राह में अब भी अगर जंगल नहीं होगा / राहुल शिवाय]]<br />
* [[उस दिवस अवतार के क़िस्से घटित हो जाएँगे / राहुल शिवाय]]<br />
* [[हक़ीक़त देखकर, मन की अक़ीदत काँप जाती है / राहुल शिवाय]]<br />
* [[लग रहा ईमान की बातों में हमको डर / राहुल शिवाय]]<br />
* [[रहेगा कैसे भला अब उजास बस्ती में / राहुल शिवाय]]</div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B5%E0%A5%8B_%E0%A4%A4%E0%A5%8B_%E0%A4%B9%E0%A4%AE_%E0%A4%B8%E0%A4%AC_%E0%A4%95%E0%A5%8B_%E0%A4%B9%E0%A5%80_%E0%A4%86%E0%A4%AA%E0%A4%B8_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%B2%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BE_%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A5%88_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFवो तो हम सब को ही आपस में लड़ा देता है / राहुल शिवाय2024-03-23T10:35:31Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=रास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय<br />
}}<br />
{{KKCatGhazal}}<br />
<poem><br />
वो तो हम सब को ही आपस में लड़ा देता है<br />
दरमियां रख के वो चिंगारी हवा देता है<br />
<br />
पहले देता है मुझे ज़ख्म वो जी भर-भर कर<br />
फिर मुझे अपना बताता है, दवा देता है<br />
<br />
कौम की बातें सियासत ने उछालीं फिर से<br />
ये वो मुद्दा है जो मसलों को भुला देता है<br />
<br />
कैसे तारों से उन्हें बोलो मिला पाऊँगा<br />
ये अँधेरा मेरे बच्चों को डरा देता है<br />
<br />
तू जो पूछेगा कबूतर से तो क्या बोलेगा<br />
क्या है आकाश का सच बाज बता देता है<br />
<br />
रात आती है, ठहरती है, गुज़र जाती है<br />
कौन ख़्वाबों को मेरे घर का पता देता है<br />
<br />
मैंने सूरज को पिलाया है पसीना अपना<br />
कौन ये है जो उजाले को मिटा देता है<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%AA_%E0%A4%85%E0%A4%81%E0%A4%A7%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BE_%E0%A4%B9%E0%A5%88_%E0%A4%AE%E0%A4%97%E0%A4%B0_%E0%A4%A4%E0%A5%82_%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A5%80_%E0%A4%95%E0%A5%8B_%E0%A4%A2%E0%A5%82%E0%A4%81%E0%A4%A2_%E0%A4%B2%E0%A5%87_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFघुप अँधेरा है मगर तू रोशनी को ढूँढ ले / राहुल शिवाय2024-03-23T10:35:14Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=रास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय<br />
}}<br />
{{KKCatGhazal}}<br />
<poem><br />
घुप अँधेरा है मगर तू रोशनी को ढूँढ ले<br />
दुख भरी इस ज़िन्दगी से चल ख़ुशी को ढूँढ ले<br />
<br />
दूर है मंज़िल भले ही और रस्ता है कठिन<br />
ज़िंदगी के इस सफ़र में तू किसी को ढूँढ ले<br />
<br />
मौत के दर पर खड़ी है लाख तेरी ज़िन्दगी<br />
ज़िन्दगी अनमोल है, तू ज़िन्दगी को ढूँढ ले<br />
<br />
क्यों भला प्यासा खड़ा है इस समंदर के क़रीब<br />
प्यास पल में मिट सके, ऐसी नदी को ढूँढ ले<br />
<br />
जिसने ईमां को ही दौलत आज तक समझा यहाँ<br />
भीड़ में खोए हुए उस आदमी को ढूँढ ले<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%97_%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%87_%E0%A4%9C%E0%A5%8B_%E0%A4%AD%E0%A5%80_%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%A6%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFरंग चाहे जो भी हों किरदारों की दस्तार में / राहुल शिवाय2024-03-23T10:34:57Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=रास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
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|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय<br />
}}<br />
{{KKCatGhazal}}<br />
<poem><br />
रंग चाहे जो भी हों किरदारों की दस्तार में<br />
आस्था सरकार की रहती है कारोबार में<br />
<br />
हर तरफ़ मायूस पतझड़ ही दिखाई दे रहा<br />
कोहरे ने धूप का सौदा किया बाज़ार में<br />
<br />
अगजनी में हैं उन्हीं के हाथ सुन लो साथियो!<br />
आज जो सम्मान पाने जा रहे दरबार में<br />
<br />
कौन जुर्रत प्यार करने की करेगा अब यहाँ<br />
नफ़रतों ने प्यार को चुनवा दिया दीवार में<br />
<br />
भूख के क़िस्से हमारी शायरी तक ही रहे<br />
और विज्ञापन सजे हर दिन यहाँ अख़बार में<br />
<br />
गाँव, घर, बस्ती, नगर सब कुछ वहीं पर रह गया<br />
सिर्फ़ महँगाई बढ़ी, इस वक़्त की रफ़्तार में<br />
<br />
एक दिन होगा तुम्हारे ज़ुल्म का भी फ़ैसला<br />
जीत यह बदलेगी जिस दिन हार के आकार में<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%A8%E0%A4%AF%E0%A5%87_%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B8_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B0,_%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%82_%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%A6%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFनये अहसास के मंज़र, जवां ख़्वाबों का गुलदस्ता / राहुल शिवाय2024-03-23T10:34:35Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=रास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
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|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय<br />
}}<br />
{{KKCatGhazal}}<br />
<poem><br />
नये अहसास के मंज़र, जवां ख़्वाबों का गुलदस्ता<br />
अँधेरे रास्ते पर लाई हो किरणों का गुलदस्ता<br />
<br />
तुम्हारे साथ जो बीते वो लम्हे मुस्कुराते हैं<br />
महकता है मेरी आँखों में उन लम्हों का गुलदस्ता<br />
<br />
मेरे बच्चे, मेरी उम्मीद, मेरा घर, मेरा बिस्तर<br />
तुम्हीं ने तो सजाया है मेरी ख़ुशियों का गुलदस्ता<br />
<br />
मैं तुमसे एक पल भी दूर ऐसे रह नहीं पाता<br />
न रखता साथ जो अपने हसीं यादों का गुलदस्ता<br />
<br />
मेरे मन के कँटीले रास्ते तुमने बुहारे हैं<br />
कि तुमसे ही सँवरता है मेरी बातों का गुलदस्ता<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%85%E0%A4%81%E0%A4%A7%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4_%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%AE_%E0%A4%B9%E0%A5%88_%E0%A4%87%E0%A4%A8_%E0%A4%89%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFअँधेरी रात का मातम है इन उजालों में / राहुल शिवाय2024-03-23T10:34:17Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=रास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
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|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय<br />
}}<br />
{{KKCatGhazal}}<br />
<poem><br />
अँधेरी रात का मातम है इन उजालों में<br />
घिरा है सूर्य यहाँ धुंध के सवालों में<br />
<br />
नदी के रास्ते में कंकरीट क्या बोये<br />
बदल गयी है नदी रिसते चंद छालों में<br />
<br />
दरख़्त कट गये पर है जड़ों में जान अभी<br />
तभी तो दिख रहा है ख़ून इन कुदालों में<br />
<br />
गधे के सींग-से सब फूल हो गये ग़ायब<br />
कि तुमने काँटे ही बोये थे इतने सालों में<br />
<br />
जहाँ के लोग हैं घड़ियाल पालने वाले<br />
वहाँ पे मछलियाँ पाओगे कैसे तालों में<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%95%E0%A5%87_%E0%A4%9C%E0%A5%8B_%E0%A4%AC%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A5%87_%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A4%BC%E0%A5%82%E0%A4%A8_%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A4%A8%E0%A4%BE_%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%87_%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFमेमनों के जो बड़े नाख़ून करना चाहते हैं / राहुल शिवाय2024-03-23T10:33:59Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=रास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
{{KKRachna<br />
|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय<br />
}}<br />
{{KKCatGhazal}}<br />
<poem><br />
मेमनों के जो बड़े नाख़ून करना चाहते हैं<br />
शांति की संभावना वे न्यून करना चाहते हैं<br />
<br />
हैं हमारे ख़ून से हर रोज़ सींचे जा रहे जो<br />
वो हमारी ख़्वाहिशों का ख़ून करना चाहते हैं<br />
<br />
जनवरी की कँपकपाती ठंड की इस रात को वो<br />
एक चुटकी धूप देकर जून करना चाहते हैं<br />
<br />
जंगलों से आ गये हैं इस नगर में लोग कुछ और<br />
जंगलों जैसा यहाँ क़ानून करना चाहते हैं<br />
<br />
हम वो हैं जिनकी रगों में दौड़ता मुंगेर है और<br />
वो हमें लहजे से देहरादून करना चाहते हैं<br />
<br />
सागरों की मौज में हमने बिताई ज़िन्दगानी<br />
कौन हैं जो अब हमें लैगून करना चाहते हैं<br />
<br />
दुष्प्रचारों का है ऐसा दौर अपने सामने अब<br />
लोग पूरे पेड़ को दातून करना चाहते हैं<br />
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|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय<br />
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<poem><br />
वो सामने थी मेरे खेलती नदी की तरह<br />
उसी में डूब गया हूँ मैं अब उसी की तरह<br />
<br />
मैं रोटियों की कड़ी धूप झेल आता हूँ<br />
वो घर में मुझपे छिटकती है चाँदनी की तरह<br />
<br />
चपातियाँ वो परसती है जब भी मुझको तो<br />
चुपेड़ देती है वो प्यार को भी घी की तरह<br />
<br />
बड़ी अधीर हो सौंधी-सी खिलखिलाती है<br />
मैं छू के उसको गुज़रता हूँ जब नमी की तरह<br />
<br />
वो दिन की सारी थकन उसपे टांग देता है<br />
मगर वो कुछ नहीं कहती है अलगनी की तरह<br />
<br />
हैं सभ्यताएँ जहाँ इर्द-गिर्द में पनपीं<br />
कि ज़िन्दगी भी है औरत की इक नदी की तरह<br />
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<poem><br />
झूठ की हो न जाए फ़तह आज फिर<br />
देखना, सच को सच की तरह आज फिर<br />
<br />
ख़ून की प्यासी रातें प्रतीक्षा में हैं<br />
डूब जाए नहीं यह सुबह आज फिर<br />
<br />
इश्क़ की इससे बेहतर वजह क्या कहूँ<br />
याद तुमको किया बेवजह आज फिर<br />
<br />
क्या हुआ गर ज़ुबां पर हैं पाबंदियाँ<br />
दिल की बातें तू आँखों से कह आज फिर<br />
<br />
घर के आँगन में दीवार होगी खड़ी<br />
डाह करने लगी है कलह आज फिर<br />
<br />
दे रही हमको क़ुदरत भी पैग़ाम कुछ<br />
यूँ ही डोली नहीं है सतह आज फिर<br />
<br />
साँप सड़कों पे बेछुट निकल आए हैं<br />
नेवलों से हुई क्या सुलह आज फिर<br />
<br />
भेड़िये जीत के मद में मदहोश हैं<br />
मेमनों की लिखी है जिबह आज फिर<br />
<br />
शांति कैसे उसे बातें समझाएगी<br />
युद्ध करने लगा है जिरह आज फिर<br />
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}}<br />
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<poem><br />
सूरज के पाँवों में मुझे छाला नहीं मिला<br />
जुगनू से आसमां को उजाला नहीं मिला<br />
<br />
पत्थर में शिव की प्राप्ति उन्हें हो नहीं सकी<br />
जिनको कि आदमी में शिवाला नहीं मिला<br />
<br />
अब शक भरी निगाहों से उसको न देखिए<br />
उसकी तो दाल में कहीं काला नहीं मिला<br />
<br />
ज़ख्मों को देख सिर्फ़ नमक बाँटते हैं लोग<br />
कोई भी दर्द बाँटने वाला नहीं मिला<br />
<br />
जो सच था उसको लोगों ने अफ़वाह कह दिया<br />
सच्ची ख़बर में उनको मसाला नहीं मिला<br />
<br />
इफ़तारी जम के राजभवन में थी चल रही<br />
भूखों को रास्ते पे निवाला नहीं मिला<br />
<br />
धरती से जो लिया उसे धरती को दे दिया<br />
किरणों के पास चाबी या ताला नहीं मिला<br />
</poem></div>Rahul Shivayhttp://kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82_%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80_%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%AC%E0%A4%B8,_%E0%A4%B9%E0%A4%B5%E0%A4%BE_%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A4%B0_%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%81%E0%A4%B2_%E0%A4%B6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AFमैं तुम्हारी महफ़िलों में बस, हवा बनकर रहा / राहुल शिवाय2024-03-23T10:32:19Z<p>Rahul Shivay: '{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=रास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया</p>
<hr />
<div>{{KKGlobal}}<br />
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|रचनाकार=राहुल शिवाय<br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय<br />
}}<br />
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<poem><br />
मैं तुम्हारी महफ़िलों में बस, हवा बनकर रहा<br />
रात-भर का साथ था बस, मैं दिया बनकर रहा<br />
<br />
जिसको केवल दर्द में तुमने पुकारा है सनम<br />
मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में वो ख़ुदा बनकर रहा<br />
<br />
सबने मुझ पर दाँव खेले अपनी चाहत के लिए<br />
सच कहूँ तो ज़िन्दगी-भर मैं जुआ बनकर रहा<br />
<br />
कुछ छुपाकर रख न पाया पास अपने मैं कभी<br />
चेहरा मेरा मेरे दिल का आइना बनकर रहा<br />
<br />
हर कोई मुझसे गुज़रकर चल दिया है छोड़कर<br />
उम्र-भर मैं हर किसी का रास्ता बनकर रहा<br />
</poem></div>Rahul Shivay