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|रचनाकार=लीलाधर जगूड़ी}} {{KKCatKavita}}<poem>
जब मैं लगभग बच्ची थी
हवा कितनी अच्छी थी
घर से जब बाहर को आयीआईलोहार ने मुझे दरांती दराँती दी
उससे मैंने घास काटी
गाय ने कहा दूध पी
दूध से मैंने, घी निकाला
उससे मैंने दिया जलाया
दीये पर एक पतंगा आया
उससे मैंने जलना सीखा
जलने में जो दर्द हुआ तो
उससे मेरे आंसू आयेआँसू आए आंसू आँसू का कुछ नहीं गढायागढ़ाया
गहने की परवाह नहीं थी
घास-पात पर जुगनू चमके
मन में मेरे भट्ठी थी
मैं जब घर के भीतर आयीआई
जुगनू-जुगनू लुभा रहा था
इतनी रात इकट्ठी थी ।
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