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इक क़यामत मेरी हयात बनी | गरमी ए बज़्म ए कायनात बनी|
आशना ए सुकूँ थी ला इलमी
आगही फ़िक्र ए शशजहात बनी |
मौत ने जब फ़ना की दी तालीम
वो घडी मुश्दा ए हयात बनी |
मौसम ए बरशिगाल ख़ूब आया
इक दुल्हन सारी कायनात बनी |
दामन ए ज़ब्त में सुकूँ पाया
शोर ओ शेवन से जब न बात बनी |
फिर वही रात सुबह बनती है
जो सहर शाम हो के रात बनी|
जब्र का सब तिलिस्म टूट गया
जब ईरादों की कायनात बनी |
किस ज़मीं में ग़ज़ल कही है " ज़िया "
कि बनाए से भी न बात बनी | ‎</poem>