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कितनों ने, अविचल कलियाँ कितनी धरती पर गया बिखेर
 
स्वतंत्रता का झंझानिल वह, जगा दिये दिया कंधे झकझोर
सोये हुए राष्ट्र को  जिसने, दिये विश्व को नव सन्देश
सत्य-अहिंसा के, निश्चल मानस में उठा सुवर्ण-हिलोर
जब लड़खड़ा खड़ा अपने पैरों पर वंदी राष्ट्र हुआ,
जीवन से भर गयीं दिशायें, सिहर उठी धरणी थर-थर,
ज्यों कोई मन्त्रविद् मन्त्र पढ़, गया लेखनी -अनी छुआ.
 
टूट गयीं तड़-तड़ करके बेड़ी युग-युग की बाँधी थी
महाक्रान्ति बन कर आयी जब वह गाँधी की आँधी थी.
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