Changes

नव वसंत / जयशंकर प्रसाद

2 bytes added, 10:20, 2 अप्रैल 2015
<poem>
पूर्णिमा की रात्रि सुखमा स्वच्छ सरसाती रही
इन्दु की किरणों किरणें सुधा की धार बरसाती रहीं
युग्म याम व्यतीत है आकाश तारों से भरा
हो रहा प्रतिविम्ब-पूरित रम्य यमुना-जल-भरा
कूल पर का कुसुम-कानन भी महाकमनीय हैंशुभ्र प्रसादावली प्रासादावली की भी छटा रमणीय है है कहीं कोकिल सघन सहकार को कूजित कूंजित किये
और भी शतपत्र को मधुकर कही गुंजित किये
सहज झोंके से कभी दो डाल को हि मिला दिया
घूमता फिरता वहाँ पहुँचा मनोहर कुज्ज कुंज मेंथी जहाँ इक सुन्दरी बैठी महा सुख-पुज्ज पुंज मेंधृष्ट मारूत भी उड़ा अच्चल अंचल तुरत चलता हुआ
माधवी के पत्र-कानों को सहज मलता हुआ
मंजरी-सी खिल गई सहकार की बाला वही
अलक-अवली हो गई सु-मलिन्द की माला वहीषान्त शान्त हृदयाकाश स्वच्छ वसंत-राका से भरा
कल्पना का कुसुम-कानन काम्य कलियों से भरा
सौरभित सरसिज युगल एकत्र होकर खिल गये
लोल अलकावलि हुई मानो मधुव्रत मिल गये
ष्वास श्‍वास मलयज पवन-सा आनन्दमय करने लगा
मधुर मिश्रण युग-हृदय का भाव-रस भरनेे लगा
दृश्‍य सुन्दर हो गये, मन में अपूर्व विकास था
आन्तनिक और’ वाहृा आन्तरिक और ब्राहृ सब में नव वसंत-विलास था
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,887
edits