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माता का लाल / श्रीनाथ सिंह

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<poem>
दीन दुखी जन की पुकार पर,
जो नित कदम बढ़ाता है।
भूखा देख साथियों को निज,
जो भूखा रह जाता है।
अन्धों को मौका पड़ने पर,
जो ऊँगली पकड़ाता है।
रोती ऑंखें देख आंख में,
जिसके जल भर आता है।
जो न कभी भय खाता है,
खड़ा क्यों न हो समुक्ख काल।
कहलाता है वही जगत में,
दयामयी माता का लाल।
</poem>