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|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
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<poem>
कानय मोन आ हँसय ठोर ई,
संगिनि जानि गेलहुँ अछि हम।
अयला बहुतो अपन अहाँकें
आइ बनल छयि आन,
के अछि कतबा दिनकेर संगी
से नहि हमरा भान।
तैं चलितहिं रहब निरन्तर
ई तँ ठानि लेलहुँ अछि हम।
लक्ष्य दूर अछि राति अन्हरिया
ठामक नहि अछि ज्ञान,
मोनक गप्प कहू ककरासँ
आर न केओ अछि आन।
जिनगीमे आराम लिखल नहि,
ई तँ मानि गेलहुँ अछि हम।
</poem>
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