1,307 bytes added,
21:35, 22 मई 2016 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
}}
{{KKCatGeet}}
{{KKCatMaithiliRachna}}
<poem>
आखर-आखरमे आँकल अछि अपन हृदयकेर भावना
रहल ने हमरा मोनमे कनियो आन तरहकेर कामना।
धरतीकेर आँतरमे-पाँतरमे आर पहाड़क खोहमे,
जनस्थलीसँ वनस्थली धरि घुमलहुँ बस व्यामोहमे !
से व्यामोह जे हमरा भेटत कतहु मनक एक मीत रे,
जकर अभावमे हमरा लगइछ मानव-जीवन तीत रे !
नहि भेटल कतबो हम ताकी, बाँटी खाली प्रीति रे !
भऽ निराश हम बेर-बेर बस गाबी खाली गीत रे !
बूझह दुनियाँ जे बूझय, हम कऽ रहलहुँ अछि साधना !
आखर-आखरमे आँकल अछि अपन हृदयकेर भावना !
</poem>