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|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
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<poem>
बारह संगी दीप, अन्हरिया काटि रहल अछि।
जल्दी बारह दीप अन्हरिया काटि रहल अछि।
मानल ई अन्हार ने बाहरकेर, भीतरकेर,
मानल ई अन्हार ने क्षणकेर, जीवनकेर।
मानल एहि अन्हारक अछि किछु ओर-छोर नहि।
मानि लेल जे हमरा जीवनमे आओत गऽ अब भोर नहि।
तैयो लिखल ‘भोरूकवा’ ई तँ मानि लेलह तों,
मरितहुँ काल ने आश गमाओल जानि लेलह तों।
तैयो बारह दीप, ज्ञान ओना जे अन्त हमर बस माटि रहल अछि।
</poem>
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