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सत्यनारायण

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|चित्र=Satyanarayan.jpg
|नाम=सत्यनारायण
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|कृतियाँ= सभाध्यक्ष हंस रहा है (1987) -- दूसरा नवगीत-संग्रह |विविध= ’सभाध्यक्ष हंस रहा है‘ की कविताएँ तीन खंडों में विभाजित हैं। ये खण्ड हैं- ’जलतरंग आठ पहर का !‘, ’जंगल मुन्तजिर है‘ तथा ’लोकतन्त्र में‘, जिसमें क्रमशः चवालिस गीत, उन्नीस छन्द-मुक्त कविताएँ तथा छः नुक्कड़ कविताएँ संग्रहीत हैं। सत्यनारायण के पास गीत रचने की जितनी तरल सम्वेदनात्मक हार्दिकता है, मुक्त छन्द में बौद्धिक प्रखरता से सम्पन्न उतनी दीप्त और वैचारिक भी है। एक विवश छटपटाहट उनकी कविताओं में विशेषतः उपलब्ध होती है, जिसका मूल कारण आम आदमी की यन्त्रणा के सिलसिले का टूट न पाना है। ’जंगल मुन्तजिर है‘ की उन्नीस कविताएँ कवि के एक दूसरे सशक्त पक्ष का -- शब्द की सही शक्ति के अन्वेषण का उद्घाटन करती हैं।
|सम्पर्क=
|जीवनी=[[सत्यनारायण / परिचय]]
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====नवगीत संग्रह====
* [[सभाध्यक्ष हंस रहा है / सत्यनारायण]]
====कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ====
* [[नदी-सा बहता हुआ दिन / सत्यनारायण]]
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