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04:25, 27 जनवरी 2019 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>
ख़मोशियों में सवाल क्या है कोई न समझा
हमें है क्या ग़म मलाल क्या है कोई न समझा
सभी ने इक एक रंग अपना बना लिया है
मगर ये रंगों का जाल क्या है कोई न समझा
जवाब देने की इतनी जल्दी पड़ी थी सब को
सवाल ये है सवाल क्या है कोई न समझा
पता था सब को सियासी मोहरे बिछे हुए हैं
मगर सियासत की चाल क्या है कोई न समझा
किया था चेहरा शनास होने का सब ने दावा
मगर मेरे दिल का हाल क्या है कोई न समझा
</poem>