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कलयुग की काली छाया मेंअंधी हुईं हवाएँरिश्ते-नाते शेष हो गएरंग लहू के श्वेत हो गएघर हो गए सरायमायावी है समय छलीसूझ-बूझ न एक चलीख़ाक हुए दिन आने वालेआदिम तम घिरा गली-गलीघुला विषैला क़ायनात मेंकोमल सांसें काठ हो गईंचिंता का चिंतन रहे चलताआशाएं बेआस हो गईंकौन सुने अब किसको रोएंरात-दिवस बोझिल मन ढोएंशापित जीवन किया काल नेसिसक मरीं सब याचनाएँ।
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