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अपने दुश्मन हाथ मलते रह गए / हरिराज सिंह 'नूर'
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17:13, 17 अक्टूबर 2019
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अपने दुश्मन हाथ मलते रह
गए,
गए।
हम तो ग़म हँसते-हँसाते सह गए।
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