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(बच्चन जी की "प्रतीक्षा" से प्रेरित है यह रचना। प्रतीक्षा की अंतिम पंक्ति है - "अपनी बाहों बाँहों में भरकर प्रिय, कंठ लगाते तब क्या होता"। )
अपनी बाँहों में भरकर प्रिय,