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द्वंद में रोया हुआ पंछी / अंकित काव्यांश
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17:50, 2 अगस्त 2020
थक गया है
कण्ठ
कंठ
में प्रतिरोध भर-भरकर यहाँ वह,
बहुत संभव है कि अब वह तोड़ दे सारी प्रथाएँ।
Abhishek Amber
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