Changes

टिटिहिरी / अशोक शाह

1,294 bytes added, 16:41, 7 अगस्त 2020
{{KKCatKavita}}
<poem>
काली-सफेद कुर्ती में
कजरारे नयन और छरहरा बदन वाली
सरपट भागती लमगोड़ी
पुकारती हर मौसम को
कुदरत के लिए करती है मॉडलिंग
हमारी पड़ोसन टिटिहिरी
 
शाम को, दोपहर में
ग्रीष्म वसन्त शिशिर में
खेत खलिहान जंगल जहान में
प्रकृति के हर रूप एवं मूड को
परोसती अथक
हम सबके समक्ष
जो कुछ भी बचा रह गया धरती पर
सवारने करती आहवान
 
देखो, खोलती सहेजके धरहरों का आकाश
जिसमें मेघ है, हवा है, आकार हैं
और खूब सारी जगह
आने वाली पीढ़ियों के लिए
 
किताबों के हम पढ़ाकू
अपना खाना और मकान से
कितना अधिक जानते हैं
निसर्ग की इस मॉडल को
</poem>