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24 मार्च {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=वैभव भारतीय
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<poem>
श्वेत चाँदनी मेरे हक़ की
उजियारा किसको देती है
काली रातों में इठलाकर
आमंत्रण किसका लेती है।
ये धवल चाँदनी चीड़ों से
छनकर जो घर में है आयी
फिर देवदार पर जा बैठी
कुछ अलसायी कुछ हुलसायी।
मैं रात-रात भर क्यों जगकर
टकटकी बाँध उस खिड़की पर
मैं किसको देखा करता हूँ
किसका तन-चेहरा गढ़ता हूँ।
ये ठंडी-ठंडी धूप यहाँ
किसको गर्मी देने आयी
हिमकण के उजले चादर पर
किसका सर्वस हरने आयी।
इन सब प्रश्नों का मकड़जाल
इक बात अनूठी करता है
चाँदनी रात की गर्मी को
हरपल उदघाटित करता है।
</poem>