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|रचनाकार=वसीम बरेलवी
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<poem>
क्या बताऊं कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया,
उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया ।
क्या बताऊं कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैंने कियातू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इतनी शिद्दत के साथ,<br>उम्र भर किसजिस बला का प्यार तुझसे बे-किस के हिस्से का सफ़र ख़बर मैंने किया ।<br>
तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इतनी शिद्दत कैसे बच्चों को बताऊं रास्तों के साथपेचो-ख़म,<br>जिस बला ज़िन्दगी भर तो किताबों का प्यार तुझसे बे-ख़बर सफ़र मैंने किया ।<br>
कैसे बच्चों को बताऊं रास्तों के पेचो-ख़मशोहरतों की नज़्र कर दी शेर की मासूमियत,<br>ज़िन्दगी भर तो किताबों का सफ़र इस दीये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया ।<br>
शोहरतों की नज़्र कर दी शेर की मासूमियतचंद जज़्बाती से रिश्तों के बचाने को ‘वसीम‘,<br>इस दीये की रोशनी को दर-बकैसा-दर कैसा जब्र अपने आप पर मैंने किया ।<br>
चंद जज़्बाती से रिश्तों के बचाने को ‘वसीम‘,<br>कैसा-कैसा जब्र अपने आप पर मैंने किया ।<br> शिद्दत: अति,<br>पेचो-ख़म: घुमाव- फिराव,<br>नज़्र: भेंट, उपहार,<br>जब्र: ज़ोर-ज़बर्दस्ती <br/poem>
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