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00:55, 22 जून 2009 साथ हरदम भी बेनकाब नहीं
खूब पर्दा है यह! जवाब नहीं
कैसे फिर से शुरू करें इसको
ज़िन्दगी है कोई किताब नहीं
क्यों दिए पाँव उसके कूचे में
नाज़ उठाने की थी जो ताब नहीं
आपने की इनायतें तो बहुत
ग़म भी इतने दिए, हिसाब नहीं
मुस्कुराने की बस है आदत भर
अब इन आँखों में कोई ख्वाब नहीं
मेरे शेरों में ज़िन्दगी है मेरी
कभी सूखें, ये वो गुलाब नहीं