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क्या ज़रूरत है
इस खुशनुमा दौर में
खंगाली-गई ख़बरें छापने की--
कि डोम, रोहिताश्व के कफ़न में से
मुर्दाघाटनुमा क़ौम को ढँकने के लिए
एक टुकड़ा माँग रहा है
 
जबकि आवाम का हरिशचंद्र खुद को
महाजन यानी हुक़ूमत के हाथों गि़रवी रखकर
अपनी लुगाई से धंधा करा रहा है
और ऐय्याश ज़िंदग़ी बसर कर रहा है।है?
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