Last modified on 15 मार्च 2010, at 22:11

विश्वास का रबाब(कविता) / अरुण कुमार नागपाल

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:11, 15 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण कुमार नागपाल |संग्रह=विश्वास का रबाब / अरुण…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँचा:KKCatPoem


सहज नहीं हूँ मैं
बहुत कुछ घट रहा है मेरे भीतर
बन रहा है बहुत कुछ
तो कुछ टूट भी रहा है

जैसे चल रही है कोई वर्कशॉप बराबर
क्या निर्माण औ’ विघटन
दो समानांतर प्रक्रियाएँ हैं?
टूट रहा है जो, उसे बचाना है

आस्थाओं ,आशाओं, मानवीय मूल्यों, परंपराओं को
संभालना है, सहेजना है.
देना भी तो है कुछ आने वाली पीढ़ियों को
विश्वास का रबाब बजेगा
यह विश्वास है अटल
जैसे मेरी कविता है प्रतीक विश्वास का.