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विसवास : अेक / विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़

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विसवास धागो
काच्चै सूत रो
चालै इकसार
टूटै तो
टूटै काळी धार।

विसवास टोरै
हेत
प्रीत अर मोह
डाकै डूंगर
पूगै काळजां
अरथावै जूण।

विसवास रो धागो
जोड़ै मन सूं मन
बधै मन
छेकड़ टूटै
मन रै मतै
टूटै कद विसवास
मन ई टूटै
अेक दूजै रो।