भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विसवास : अेक / विरेन्द्र कुमार ढुंढाडा़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विसवास धागो
काच्चै सूत रो
चालै इकसार
टूटै तो
टूटै काळी धार।

विसवास टोरै
हेत
प्रीत अर मोह
डाकै डूंगर
पूगै काळजां
अरथावै जूण।

विसवास रो धागो
जोड़ै मन सूं मन
बधै मन
छेकड़ टूटै
मन रै मतै
टूटै कद विसवास
मन ई टूटै
अेक दूजै रो।