भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विस्तार / भास्कर चौधुरी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:57, 9 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भास्कर चौधुरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिक रहे हैं
पास-पड़ोस के खेत
छोटे-छोटे टुकड़ों में
आसमान छूती कीमतों पर
इन्हीं खेतों को कभी खरीदा था
बिल्डरों ने कौड़ियों के मोल
 
सिमट रहा है
पानी
सिमट रही है
हवा
सिमट रहे हैं
बरगद
नीम
बबूल
आकाश सिमट रहा है
शहर का हो रहा है विस्तार!!