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वीरांगना / उर्मिल सत्यभूषण

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उम्रभर करती रही
जिन सत्यों का सम्मान
आज उनके वास्ते
तुम हो गईं कुर्बान
मातृवेदी पर किये
उत्सर्ग अपने प्राण
किन्तु जायेगा नहीं
बेकार यह बलिदान
युग युगों तक आस्था लौ सी जलोगी तुम वीरांगना!
प्रेरणा बन कोटि हृदयों में ढलोगी तुम वीरांगना!
विस्तारवादी नीतियों
की वासना का हास
जंगबाज़ों के कुटिल
आतंकमय अभ्यास
शातिराना कोशिशें
तुमको न आई रास
तुम अमन के वास्ते
करती रहीं प्रयास
विश्व में अब शान्ति सलिला बन बहोगी तुम वीरांगना।
निर्गुट, नवोदित राष्ट्रों की उंगली गहोगी तुम वीरांगना।
तुम सहज विश्वासिनी
विश्वास तुमको छल गये
आस्तीनों के विषैले सांप
कितने पल गये
रक्षकों की आड़ में
भक्षक निशानें चल गये
बिजलियाँ गिरने लगीं
और आशियाने जल गये
सूली पर लटके मसीहा सी रहोगी तुम वीरांगना।
‘देश यह अखंड है’ निज नित कहोगी तुम वीरांगना।
तुम गई प्रियदर्शिनी
पर स्वर तुम्हारे शेष
शैल शिखरों पर
विसर्जित हो गये अवशेष
वायुमंडल में घुली
गंध है अशेष
महिमा मंडित वीरता
के आगे नत नत देश
इतिहास में अब कृष्ण वेणुसी बजोगी तुम वीरांगना।
प्रकाश बनकर स्वर्ण पृष्ठों से झरोगी तुम वीरांगना।