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वीर / जटाधर दुबे

जे धुन के पक्का होय छै,
वीर वहेॅ कहलावै छै।

पर्वत के हृदय हिलावै छै,
विघनोॅ केॅ गला लगावै छै,
काँटोॅ में राह बनावै छै,
जें भय केॅ दास बनावै छै
वीर वहेॅ कहलावै छै।

शिखरोॅ पर ध्वजा फहरावै छै
जंगल में ख़ुशी मनावै छै
पथ झाड़ी पोछी साफ़ बनावै छै
जें पत्थर केॅ पिघलावै छै
वीर वहेॅ कहलावै छै।