भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वृक्षों के पत्तों की बन्द मुट्ठियाँ / पूनम अरोड़ा 'श्री श्री'
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:54, 20 अक्टूबर 2017 का अवतरण
सारे वृक्ष रात को उन प्रेमिकाओं की साँस बन रहे थे
जो अपने मकानों में बंद रहती हैं.
लगा ऐसा
कि यह उन वृक्षों के पत्तों की बन्द मुट्ठियाँ हैं
जो धीरे-धीरे खुल रही हैं.