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वृद्धा-पुराण / राजेन्द्र गौतम

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'मझले की चिट्ठी आई है
ओ मितरी की माँ ।

परदेसों में जाकर भी वह
मुझ को कब भूला
पर बच्चों की नहीं छुट्टियाँ
आना मुश्किल है
वह तो मुझे बुला ही लेता
अपने क्वार्टर पर
अरी सोच कब लगता मेरा
दिल्ली में दिल है
भेजेगा मेरी खाँसी की
जल्दी यहीं दवा ।'

'मेरे बड़के का भी ख़त री
परसों ही आया
तू ही कह किसके होते हैं
इतने अच्छे लाल
उसे शहर में मोटर-बंगला
सारे ठाठ मिले
गाँव नहीं पर अब तक भूला
आएगा इस साल
टूटा छप्पर करवा देगा
अबकी बार नया ।'

'एक बात पर मितरी की माँ
समझ नहीं आती
क्यों सब बड़के, छुटके, मझले
पहुँचे देस-बिदेस
लठिया, खटिया, राख, चिलमची
अपने नाम लिखे,
चिट्ठी-पत्री-तार घूमते
ले घर-घर 'संदेस`
यहाँ मोतियाबिंद बचा
या गठिया और दमा ।'