भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वृन्दावन श्याम मची होरी / ब्रजभाषा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:50, 27 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=सूरदास }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=ब्रजभाष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: सूरदास

वृन्दावन श्याम मची होरी। टेक
बाजत ताल मृदंग झांझ ढप, बरसत रंग उड़त रोरी॥
कित ते आये कुंवर कन्हैंया, कितते आई राधा गोरी।
गोकुल ते आये कुँवर कन्हैंया, बरसाने सेस राधा गोरी॥
कौन के हाथ कनक पिचकारी, कौन के हाथ अबीर झोरी।
कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी, राधा के हाथ अबीर झोरी॥
अबीर गुलाल की धूम मची है, फेंकत है भरि-भरि झोरी।
‘सूरदास’ छबि देख मगन भये, राधेश्याम जुगल जोरी॥