Last modified on 19 अक्टूबर 2007, at 02:43

वेदना ओढ़े कहाँ जाएँ / महेन्द्र भटनागर


वेदना ओढ़े कहाँ जाएँ!
उठ रहीं लहरें अभोगे दर्द की!
कैसे सहज बन मुस्कुराएँ!!

रुँधा है कंठ
कैसे गीत में उल्लास गाएँ!
टूटे हाथ जब
कैसे बजाएँ साज़,

सन्न हैं जब पैर

कैसे झूम कर नाचें व थिरकें आज!

खंडित ज़िंदगी —

टुकड़े समेटे, अंग जोड़े, लड़खड़ाते
रे कहाँ जाएँ!

दिशा कोई हमें
हमदर्द कोई तो बताए!