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वेदना से प्रीति की भाँवर हुई तो / संदीप ‘सरस’

वेदना से प्रीति की भाँवर हुई तो,
भावना के पाँव भारी हो गए हैं।

हर कली का पुष्प से संबंध क्यों है?
कंटकों का पुष्प से अनुबंध क्यों है?
जब प्रणय का गान है प्राणों से प्यारा,
तो कहो फिर गीत पर प्रतिबंध क्यों है?

आह ने उर में जलन के बीज घोले,
तो नयन के अश्रु खारी हो गए हैं।

आज मेरी गूँज फिर अनुगूँज बनकर
पास मेरे हाथ खाली लौट आयी।
कर दिया तुमने तिरस्कृत तो बिचारी,
भावना हो कर सवाली लौट आयी।

देहरी जबसे तुम्हारी छू के लौटे,
गीत मेरे ब्रह्मचारी हो गए हैं।