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वेबसी के उम्र भर बिस्तर मिले / महेश कटारे सुगम

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बेबसी के उम्र भर बिस्तर मिले ।
ग़म के तकिए दर्द के चादर मिले ।

जिस तरफ़ डाली ज़माने में नज़र,
मुस्कराते ज़ुल्म के मंज़र मिले ।

हो गए हैं दिल अचानक गुम कहीं,
जिस्म में बैठे हुए पत्थर मिले ।

कोठियों में पल रहीं हैं नफ़रतें,
प्यार के कुनवे हमें बेघर मिले ।

जब से आया हूँ मुहब्बत के हुज़ूर,
मेरी ग़ज़लों को नए तेवर मिले ।

उम्र भर लफ़्ज़ों की जब बोई फ़सल,
तब कहीं जाकर सुगम गौहर मिले ।

16-02-2015