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वे कहेंगे / रमेश कौशिक

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वे कहेंगे -
उन्होंने जो भी निर्णय किये
सही थे

फ़र्क इतना था
कि उनके सिरों और धड़ों में
सम्बन्ध नहीं थे
उनके सभी सपने
बहुत सुंदर थे
पर क्या किया जाये
उनके हाथ
उन्हें चारागाहों में बो आये
नतीजा साफ था
पशुओं को उधर आना था
और कोई चारा न था
उन्हीं को खाना था

वे कहेंगे -
जंगल से निकालने वाली
हर पगडंडी
राजमार्ग की ओर
मुड जाती थी
और जब वह
सत्ता के कारखाने में
पहुँचती थी
तो वे सारी कड़ियाँ
तोड़ दी जाती थीं
जो पगडंडी और राजमार्ग को
जोड़ती थी
ऐसे में वही हुआ
जो होना था
जड़ से कट कर फुलक को
हरा नहीं होना था


वे कहेंगे -
जिनके जबान थी
उनके आँखे न थी
जिनके आँखे थी
जबान न थी
सभी कुछ ऐसा था
जो मैग्मा को खोला रहा था
और भूगोल
साढ़े तेईस अंश झुका था
अपनी धुरी पर
इसके बावजूद
सदियों का गोला घूमता रहा
टूट कर कहीं भी तो नहीं गिरा
वैसा आश्चर्य युग फिर कभी
नहीं आएगा

वे कहेंगे -
उनके पास
शब्द कोश बहुत अच्छे थे
जब कहीं कुछ नहीं होता था
तो उससे बहुत काम लेते थे
और जब कुछ होता
तब चुप रहते
और तमाशा देखते

वे कहेंगे -
महाकाव्यों में
देवताओं की फोज थी
और टुच्चों की
उपन्यासों में
आदमी का जिक्र
बहुत किया जाता था
लेकिन वह कहीं नहीं था
बरसों की तलाश के बाद
कहीं कोई मिल भी गया
तो दूसरे दिन उसे
मार दिया जाता था
इसलिए कि बरसों
उसका जिक्र कर सकें

वे कहेंगे -
उन दिनों प्रेमी भी बहुत थे
भाषा का जन्म
उनके संकेतों से हुआ था
कोणार्क और खुज्रराहो का पत्थर
उनका ईश्वर था
जिसे साक्षी कर
वे अपनी प्रेमिका का
टिच बटन छूते थे
सौंदर्य जड़ता को तोड़ता है
लेकिन उनके साथ
कुछ उल्टा ही होता था
भविष्य की नाव
जब आँखों के सागर में
पाल खोलती थी
तब विगत का सांप
उन्हें डस जाता था

वे कहेंगे -
उन्होंने सभी कुछ काटा
अतिरिक्त असत्य की अनिवार्यता के
कि कहीं अपने को जुड़ा ही नहीं पाये
यहाँ तक कि इतिहास की
बड़ी से बड़ी दुर्घटना पर
उनके दो आँसू नहीं आये
और कवि
जो थे उस काल के अलमबरदार
उनका काम रह गया था
रिपोर्टिंग करना
और निकालना अखबार
वे कहेंगे . . . . .