गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
वे किसान की नयी बहू की आँखें / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
3 bytes removed
,
06:02, 10 सितम्बर 2023
वे केवल निर्जन के दिशाकाश की,
प्रियतम के प्राणों के पास-हास की,
भीरु पकड़ जाने को हैं
दुनियाँ
दुनिया
के कर से--
बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी वर से।
</poem>
डा० जगदीश व्योम
929
edits