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"वे किसान की नयी बहू की आँखें / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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वे केवल निर्जन के दिशाकाश की,
 
वे केवल निर्जन के दिशाकाश की,
 
प्रियतम के प्राणों के पास-हास की,
 
प्रियतम के प्राणों के पास-हास की,
भीरु पकड़ जाने को हैं दुनिया के कर से--
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भीरु पकड़ जाने को हैं दुनियाँ के कर से--
 
बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी वर से।
 
बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी वर से।
 
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19:40, 11 अक्टूबर 2009 का अवतरण

नहीं जानती जो अपने को खिली हुई--
विश्व-विभव से मिली हुई,--
नहीं जानती सम्राज्ञी अपने को,--
नहीं कर सकीं सत्य कभी सपने को,
वे किसान की नयी बहू की आँखें
ज्यों हरीतिमा में बैठे दो विहग बन्द कर पाँखें;
वे केवल निर्जन के दिशाकाश की,
प्रियतम के प्राणों के पास-हास की,
भीरु पकड़ जाने को हैं दुनियाँ के कर से--
बढ़े क्यों न वह पुलकित हो कैसे भी वर से।