भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वे बीमार थे / कल्पना सिंह-चिटनिस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी प्रवृति है
औषधियां सहेज कर रखना,
और रोगों का
निदान ढूंढना।

मेरे शुभचिंतक कहते हैं
मैं समय गंवाती हूं,
अमूल्य क्षणों को
व्यर्थ लुटाती हूँ।

हर रोज आकर
वे उलाहने देते हैं मुझे।
पर इधर कई पखवारे बीत गये,
वे नहीं आये तो सोंचा कि

मैं ही चलूं आज
उनकी कुशल पूछने,
तो मालूम हुआ -
वे बीमार थे।