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वैराग्य / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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दुर्लभ देह विदेह कहा भौ, अन्तहु है पुहुमी सटना।
क्षिति छार परेमुखभार जरे, तन गाड़ परे प्रभु जा घटना॥
धरनी धरु एक धनी पगु जो, कलिकर्मको फन्द चहो कटना।
तप तीरथ यज्ञ विधान सबै, करि गोविन्द 2 की रटना॥2॥