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वैराग्य 1 / शब्द प्रकाश / धरनीदास

मातु पिता सुत मीत सबै, तब काह न दुइ दिन टेकि धरो।
जब चोट हुताशन राज हरो, धन मींजत काहेके हाथ खरो॥
अजहूँ पकरो प्रभु की शरनी, धरनी जनि धन्धहिँ बूडि मरो।
जीवन लोहतवा-जल-बुन्द गोपाल 2 कहो॥4॥