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वैसे तो जीवन में हर दुश्वारी है / पुष्पेन्द्र ‘पुष्प’

वैसे तो जीवन में हर दुश्वारी है
लेकिन अपनी ताक़त भी खुद्दारी है

कहने को तो सब कुछ अच्छा है लेकिन
खुद से खुद की जंग बराबर जारी है

वो आकर कुछ ज़ख्म हरे कर जायेंगे
फिर भी उनसे मिलने की तैयारी है

मिट जाने से पहले इतना सोचो तो
जी लेना, मरने पर कितना भारी है

जिसकी बहरों से कतराती हैं ग़ज़लें
उसके हाथों में तमगा सरकारी है