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वो इक दरख़्त है दोपहर में झुलसता हुआ / ज्ञान प्रकाश विवेक
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08:49, 8 दिसम्बर 2008
मैं जा रहा हूँ हमेशा के वास्ते घर से
पता नहीं मुझे लगता है कुछ उजड़ता
हुआ
वो कोई और नहीं दोस्तो अँधेरा है
दीयासिलाई जला कर खड़ा है हँसता
हुआ
.
.
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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