भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो एक चाँद-सा चेहरा जो मेरे ध्यान में है / चाँद शुक्ला हादियाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो एक चाँद-सा चेहरा जो मेरे ध्यान में है
उसी के साये की हलचल मेरे मकान में है

मैं जिसकी याद में खोया हुआ-सा रहता हूँ
वो मेरी रूह में है और मेरी जान में है

वो जिसकी रौशनी से क़ायनात है जगमग
उसी के नूर का चर्चा तो कुल जहान में है

तुझे तलाश है जिस शय की मेरे पास कहाँ
तू जा के देख वो बाज़ार में दुकान में है

चला के देख ले बेशक तू मेरे सीने पर
वो तीर आख़िरी जो भी तेरी कमान में है

ये ज़िन्दगी है इसे ‘चाँद’, सहल मत समझो
हरेक साँस यहाँ गहरे इम्तिहान में है।