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"वो कभी धूप कभी छाँव लगे / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर

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वो कभी धूप कभी छाँव लगे
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वो कभी धूप कभी छाँव लगे
मुझे क्या-क्या न मेरा गाँव लगे  
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मुझे क्या-क्या न मेरा गाँव लगे
  
किसी पीपल के नीचे जा बैठे  
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किसी पीपल के तले जा बैठे  
अब भी अपना जो दांव लगे
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अब भी अपना जो कोई दाँव लगे
  
एक रोटी के ता'अक्कुब में चला हूँ इतना  
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एक रोटी के 'अक्कुब<ref>पीछा करना</ref> में चला हूँ इतना  
की मेरा पाँव किसी और ही का पाँव लगे  
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की मेरा पाँव किसी और ही का पाँव लगे
  
जैसे देखात में लू लगते है चरवाहों को
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रोटि-रोज़ी की तलब जिसको कुचल देती है
बम्बई में यूँ ही तारों की हँसी छाँव लगे
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उसकी ललकार भी एक सहमी हुई म्याँव लगे ।
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जैसे देहात में लू लगती है चरवाहों को
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बम्बई में यूँ ही तारों की हँसी छाँव लगे
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20:17, 30 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

वो कभी धूप कभी छाँव लगे ।
मुझे क्या-क्या न मेरा गाँव लगे ।

किसी पीपल के तले जा बैठे
अब भी अपना जो कोई दाँव लगे ।

एक रोटी के त'अक्कुब<ref>पीछा करना</ref> में चला हूँ इतना
की मेरा पाँव किसी और ही का पाँव लगे ।

रोटि-रोज़ी की तलब जिसको कुचल देती है
उसकी ललकार भी एक सहमी हुई म्याँव लगे ।

जैसे देहात में लू लगती है चरवाहों को
बम्बई में यूँ ही तारों की हँसी छाँव लगे ।

शब्दार्थ
<references/>