Last modified on 27 नवम्बर 2017, at 13:55

वो काशी को क्योटो बनाएँगे कैसे / आलोक यादव

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:55, 27 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक यादव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वो काशी को क्योटो बनाएँगे कैसे
स्वभावों का अन्तर मिटाएँगे कैसे

जहाँ के निवासी हों तम के उपासक
दिये उस जगह वो जलाएँगे कैसे

जड़ें चाहतीं हैं ठहरने को मिट्टी
हथेली पे सरसों उगाएँगे कैसे

हो विधि-भंजना जिनकी आदत में शामिल
सदाचार उनको सिखाएँगे कैसे

अगर आँख वाले भी मूँदे हों आँखें
उन्हें आप दर्पण दिखाएँगे कैसे

जो फूलों की रक्षा का दायित्व लेंगे
वो काँटों से दामन बचाएँगे कैसे

ग़ज़ल का हुनर जो न 'आलोक' सीखा
तो गागर में सागर समाएँगे कैसे